मेवाड़-
- मेंवाड़ में गुहिल वंश का शासन था।
- मेवाड़ के प्राचीन नाम-
- 1. मेदपाट
- 2. प्राग्वाट
- 3. शिवि जनपद
मेवाड़ के गुहिल वंश के प्रमुख राजा-
- 1. बापा रावल
- 2. अल्लट
- 3. रावल जैत्रसिंह
- 4. रावल रतन सिंह (1302- 1303 ई.)
मेवाड़ में गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा के प्रमुख राजा
- 5. राणा हम्मीर (1326- 1364 ई.)
- 6. राणा लाखा (1382- 1421 ई.)
- 7. राणा मोकल (1421- 1433 ई.)
- 8. राणा कुम्भा या महाराणा कुम्भा (1433- 1468 ई.)
- 9. रायमल (1473-1509 ई.)
- 10. महाराणा सांगा (1509-1528 ई.)
- 11. विक्रमादित्य (1531-1536 ई.)
- 12. उदय सिंह (1537-1572 ई.)
- 13. महाराणा प्रताप (1572-1597 ई.)
- 14. महाराणा अमर सिंह- I (1597-1620 ई.)
- 15. महाराणा कर्णसिंह (1620- 1628 ई.)
- 16. महाराणा जगत सिंह- I (1628- 1651 ई.)
- 17. महाराणा राजसिंह (1652- 1680 ई.)
- 18. महाराणा जयसिंह (1680- 1698 ई.)
- 19. महाराणा अमर सिंह- II (1698- 1710 ई.)
- 20. महाराणा संग्राम सिंह- II (1710- 1734 ई.)
- 21. महाराणा जगतसिंह- II (1734- 1751 ई.)
- 22. महाराणा भीमसिंह (1778- 1828 ई.)
1. बापा रावल-
- वास्तविक नाम- कालभोज
- गुरु- हारीत ऋषि
- मामा- मान मौर्य
- 734 ई. में मान मौर्य को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार कर अपनी राजधानी नागदा (उदयपुर) को बनाया।
- निर्माण- नागदा में एकलिंग मंदिर (शिव) का निर्माण करवाया।
- मेवाड़ के राजा खुद को एकलिंग जी का दीवान मानते थे।
- मेवाड़ में सोने के सिक्के (115 ग्रेन) चलाए।
- मुस्लिम सेना को हराते हुए गजनी (अफगानिस्तान) तक चला गया था।
- गजनी के राजा सलीम को हराकर अपने भान्जे को गजनी का राजा बनाया।
- इतिहासकार सी.वी. वैद्य (C.V. Vaidya) ने बापा रावल की तुलना चार्ल्स मार्टेल (Charles Martel) से की है। क्योंकि भारत में तुर्कों के आक्रमण को बापा रावल के द्वारा रोका जा रहा था तो यूरोप में तुर्कों के आक्रमण को चार्ल्स मार्टेल (फ्रांस) के द्वारा रोका जा रहा था।
- बापा रावल के सैन्य शिविर के कारण पाकिस्तान के रावल पिंडी शहर का नामकरण हुआ था। अर्थात् बापा रावल जब गजनी में तुर्कों से युद्ध करने गया था तब बापा रावल ने पाकिस्तान की जिस जगह अन्य सैन्य शिविर लगाया था उस जगह को बापा रावल के नाम से रावल पिंड कहा जाने लगा था तथा बाद में रावल पिंड को पावल पिंडी के नाम से जाना जाने लगा था।
- उपाधियां-
- (I) हिन्दू सूरज
- (II) राजगुरु
- (III) चक्कवै
2. अल्लट- अन्य नाम- आलुरावल
सारणेश्वर प्रशस्ति (953 ई.)-
- इसके अनुसार बापा रावल ने आहड़ (उदयपुर) को अपनी दुसरी राजधानी बनाया।
- मेवाड़ की मुख्य राजधानी नागदा थी।
- इसके अनुसार बापा रावल ने आहड़ में वराह मंदिर का निर्माण करवाया।
- बापा रावल के समय की कर (Tax) व्यवस्था तथा प्रशासनिक व्यवस्था की जानकारी मिलती है।
- इसमें मुख्य प्रशासनिक अधिकारियों के पद का भी उल्लेख किया गया है जैसे-
- (I) अमात्य- राजा के सभी मंत्रियों का ध्यान या निगरानी रखने वाला प्रशासनिक अधिकारी
- (II) संधि विग्रहक- राजा के द्वारा लड़े जाने वाले युद्ध तथा संधि की व्यवस्था को देखने वाला प्रशासनिक अधिकारी
- (III) अक्षपटलिक- राजा के आय तथा व्यय की निगरानी रखने वाला प्रशासनिक अधिकारी
- (IV) भिषगाधिराज- राजा का मुख्य चिकित्सा अधिकारी या राज वैद्य
- (V) बन्दिपति- राजा की प्रशंसा करने वाला व्यक्ति
आटपुर अभिलेख (977 ई.)- मेंवाड़ के राजा शक्तिकुमार के आटपुर अभिलेख (आहड़, उदयपुर) के अनुसार अल्लट की हूण रानी हरियादेवी ने हर्षपुर नामक गाँव की स्थापना की।
3. रावल जैत्रसिंह-
भुताला का युद्ध-
- रावल जैत्रसिंह (✅) Vs इल्तुतमिश (दिल्ली) (❌)
- स्थान- भुताला
- युद्ध वर्ष- 1227 ई.
- युद्ध में इल्तुतमिश की भागती हुई सेना ने मेवाड़ के नागदा को लुट लिया था इसके बाद जैत्रसिंह ने अपनी राजधानी नागदा से हटाकर चित्तौड़ को बनाया।
- इतिहासकार दशरथ शर्मा के अनुसार जैत्रसिंह का शासन काल मध्यकालिन मेवाड़ का स्वर्ण काल माना जाता है।
- युद्ध में जैत्रसिंह के सेनापति-
- 1. बालक
- 2. मदन
- जयसिंह सूरी की पुस्तक 'हम्मीर मद मर्दन' से इस युद्ध की जानकारी मिलती है।
- हम्मीर मद मर्दन में इल्तुलमिश को हम्मीर कहा गया है।
4. रावल रतन सिंह (1302- 1303)-
पिता- समर सिंह
मेवाड़ का अंतिम राजा जिसने रावल की उपाधि धारण की।
कुम्भकर्ण (रावल रतन सिंह का छोटा भाई)- नेपाल में गुहिल वंश की राणा शाखा का शासन स्थापित किया।
पद्मिनी- (सिंहल द्वीप की राजकुमारी)
- पति- रावल रतन सिंह
- पिता- गंधर्वसेन
- माता- चम्पावती
- राघव चेतन ने अलाउद्दीन खिलजी को पद्मिनी की सुंदरता के बारे में बताया।
- 1540 ई. में मलिक मुहम्मद जायसी (उत्तर प्रदेश) ने पद्मावत (अवधी भाषा) नामक पुस्तक लिखी।
अलाउद्दीन खिलजी का चित्तौड़ आक्रमण-
- 1303 ई. में चित्तौड़ पर आक्रमण किया।
- 1303 ई. में चित्तौड़ का पहला साका हुआ।
- रानी पद्मिनी ने 1600 अन्य महिलाओं के साथ जौहर किया।
- रावल रतन सिंह के नेतृत्व में केसरिया किया गया।
- 25 अगस्त 1303 ई. में अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया।
- अलाउद्दीन खिलजी ने युद्ध जितने के बाद चित्तौड़ में 30,000 लोगों का नरसंहार (कत्लेआम) करवाया।
- अलाउद्दीन खिलजी ने अपने पुत्र खिज्र खाँ (खिज्र खान) को चित्तौड़ का राजा बना दिया।
- अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का नाम बदलकर खिज्राबाद कर दिया।
- चित्तौड़ आक्रमण के दौरान रावल रतन सिंह के सेनापति- (I) गौरा (II) बादल
- अलाउद्दीन खिलजी के चित्तौड़ आक्रमण के कारण-
- (I) अलाउद्दीन खिलजी अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।
- (II) चित्तौड़ का किला दिल्ली से मालवा तथा गुजरात के व्यापारिक मार्ग पर स्थित था।
- (III) चित्तौड़ का किला अपने सामरिक महत्व के लिए प्रसिद्ध था।
- (IV) अलाउद्दीन खिलजी जब गुजरात आक्रमण (1299) के लिए जा रहा था तब मेवाड़ के राजा समर सिंह ने अलाउद्दीन खिलजी से कर (Tax) वसूल किया था। अतः यह बात अलाउद्दीन खिलजी के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न बन गया था।
- (V) मेवाड़ की शक्तियां बढ़ रही थी तथा अलाउद्दीन खिलजी मेवाड़ की बढ़ती हुई शक्तियों को नियंत्रित करना चाहता था।
- (VI) रानी पद्मिनी की सुंदरता।
धाईबी पीर की दरगाह का अभिलेख (1325 ई.)-
- चित्तौड़ से प्राप्त हुआ।
- इसमें चित्तौड़ का नाम खिज्राबाद दिया गया है।
खिज्र खाँ (खिज्र खान)-
- चित्तौड़ का राजा बनने के बाद खिज्र खाँ ने चित्तौड़ में गम्भीरी नदी पर पुल बनवाया।
- चित्तौड़ में एक मकबरे का निर्माण भी करवाया।
- चित्तौड़ में मकबरे के पास एक अभिलेख लगवाया।
- मकबरे के अभिलेख मेंअलाउद्दीन खिलजी को दूसरा सिकंदर, ईश्वर की छाया तथा संसार का रक्षक बताया गया है।
- कुछ समय के बाद अलाउद्दीन खिलजी ने चित्तौड़ का किला मालदेव सोनगरा को दे दिया था।
मालदेव सोनगरा-
- अलाउद्दीन खिलजी ने अपने बेटे खिज्र खाँ को हटाकर चित्तौड़ का राजा मालदेव सोनगरा को बना दिया था।
- अन्य नाम- मुँछाला मालदेव
- जालौर के चौहान वंश के राजा कान्हड़देव सोनगरा का छोटा भाई।
मेवाड़ में गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा का शासन प्रारम्भ-
5. राणा हम्मीर (1326- 1364 ई.)-
- राणा हम्मीर ने बनवीर सोनगरा (पिता- मालदेव सोनगरा) को हराकर चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया।
- अन्य नाम- मेवाड़ का उद्धारक
- उपाधि- राणा
- राणा हम्मीर सिसोदा गाँव का था अतः राणा हम्मीर से ही मेवाड़ में गुहिल वंश की सिसोदिया शाखा का शासन प्रारम्भ होता है।
- सिसोदा गाँव राजसमंद जिले के कुंभलगढ़ के पास स्थित है।
- सिंगोली के युद्ध (बांसवाड़ा) में मुहम्मद बिन तुगलक (दिल्ली) को हराया।
- निर्माण- चित्तौड़ में बरवडी माता का मंदिर बनवाया।
- बरवडी माता को अन्नपूर्णा माता भी कहते हैं।
- मेवाड़ के गुहिल वंश की ईष्ट देवी- बरवडी माता
- गुहिल वंश की कुल देवी- बाण माता
- उपाधियां-
- (I) विषम घाटी पंचानन (कुंभलगढ़ प्रशस्ति के अनुसार)
- (II) वीर राजा (रसिक प्रिया के अनुसार)
- (III) प्रबल हिन्दू (कर्नल जेम्स टाॅड के अनुसार)
राहप-
- सिसोदा का संस्थापक
- राणा हम्मीर राहप का ही वंशज था।
6. राणा लाखा (1382- 1421 ई.)-
- इसके समय जावर में चाँदी की खान प्राप्त हुई।
- एक बंजारे ने उदयपुर के पिछोला गाँव में पिछोला झील का निर्माण करवाया।
- बंजार घूमकड़ व्यापारी होता है।
- पिछोला झील के पास नटनी का चबूतरा बनवाया गया।
- कुम्भा हाडा नकली बूंदी की रक्षा करते हुए मारा गया।
- कुम्भा हाडा राणा लाखा की रानी हाडी रानी का भाई था।
- मारवाड़ के राजा राव चून्डा ने अपनी राजकुमारी हंसाबाई का विवाह मेवाड़ के राणा लाखा के साथ किया था।
- राणा लाखा तथा हंसाबाई के विवाह के दौरान राणा लाखा के बेटे राणा चून्डा ने प्रतिज्ञा की की वह मेवाड़ का अगला राजा नहीं बनेगा बल्कि हंसाबाई का बेटा मेवाड़ का अगला राजा होगा।
- राणा चून्डा के द्वारा ली गई इसी प्रतिज्ञा के कारण राणा चून्डा को मेवाड़ का भीष्म कहा जाता है।
- राणा चून्डा के इस त्याग के कारण राणा चून्डा को सलूम्बर (उदयपुर) का ठिकाना दिया गया।
- मेवाड़ रियासत का सबसे बड़ा ठिकाना- सलूम्बर ठिकाना
सलूम्बर के सामंत को विशेष अधिकार दिये गये थे। जैसे-
- (I) सलूम्बर का सामंत मेवाड़ के राजा का राजतिलक करेगा अर्थात् मेवाड़ के राजा का चयन सलूम्बर के सामंत के द्वारा ही किया जायेगा।
- (II) सलूम्बर का सामंत मेवाड़ के राणा या राजा के साथ सभी कागज पत्रों पर हस्ताक्षर करेगा।
- (III) मेवाड़ के राणा या राजा की अनुपस्थिति में सलूम्बर का सामंत मेवाड़ की राजधानी को संभालेगा। अर्थात् मेवाड़ के राजा की अनुपस्थित में राजा का कार्य सलूम्बर का सामंत करेगा।
- (IV) सलूम्बर का सामंत हमेशा मेवाड़ की सेना (हरावल) का सेनापति होगा।
- हरावल- सेना के प्रथम भाग या सेना की सबसे आगे की टुकड़ी
- चन्दावल- सेना के दूसरे भाग या सेना की आगे से दूसरी टुकड़ी
7. राणा मोकल (1421- 1433)-
- पिता- राणा लाखा
- माता- हंसाबाई
- पहला संरक्षक- राणा चून्डा (राणा लाखा का बेटा)
- दूसरा संरक्षक- राव रणमल (हंसाबाई का भाई)
- हंसाबाई के अविश्वास के कारण राणा चून्डा मालवा के सुलतान होशंगशाह के पास चला गया था।
- बापा रावल के द्वारा नागदा में बनवाये गये एकलिंग मंदिर का प्रकोटा (चार दिवारी) बनवाया।
- चित्तौड़ में समिद्धेश्वर मंदिर (शिव) का पुनर्निर्माण करवाया।
- समिद्धेश्वर मंदिर को पहले त्रिभुवन नारायण मंदिर कहा जाता था।
- त्रिभुवन नारायण (समिद्धेश्वर) मंदिर का निर्माण मालवा के राजा भोज परमार ने करवाया था।
- भोज परमार की उपाधि त्रिभुवन के कारण मंदिर का नाम त्रिभुवन नारायण था।
- 1433 ई. में गुजरात के राजा अहमदशाह ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया।
- राजसमंद के जीलवाड़ा नामक स्थान पर चाचा, मेरा, तथा महपा पंवार नामक तीन लोगों ने राणा मोकल की हत्या कर दी।
8. राणा कुम्भा या महाराणा कुम्भा (1433- 1468)-
- पिता- राणा मोकल
- माता- सौभाग्यवती परमार
- संरक्षक- राव रणमल
- राव रणमल की सहायता से अपने पिता राणा मोकल की हत्या का बदला लिया।
- मेवाड़ दरबार में राव रणमल का प्रभाव बढ़ने लगा।
- राव रणमल ने सिसोदियों के नेता राघवदेव (राणा चून्डा का भाई) को मरवा दिया था।
- राणा चून्डा को मालवा से वापस बुलाया गया।
- राणा चून्डा ने भारमली की सहायता से राव रणमल को मार दिया।
- राव रणमल के बेटे जोधा ने बीकानेर के पास काहुनी नामक गाँव में शरण ली।
- राणा चून्डा ने राठौड़ों की राजधानी मंडौर पर अधिकार कर लिया।
- महाराणा कुम्भा एक धर्मनिरपेक्ष राजा था।
- जैनों (जैन समुदाय) का तीर्थ यात्रा कर समाप्त कर दिया।
- कुंभलगढ़ के किले (राजसमंद) में महाराणा कुम्भा की हत्या उसके बेटे उदा ने कर दी।
आंवल-बांवल की संधि (1453 ई.)-
- महाराणा कुम्भा (मेवाड़) + जोधा (मारवाड़)
- संधि में सोजत (पाली) को मेवाड़ तथा मारवाड़ की सीमा बनाया गया।
सारंगपुर का युद्ध (1437 ई.)-
- महाराणा कुम्भा (मेवाड़) (✅) Vs महमूद खिलजी (मालवा) (❌)
- स्थान- सारंगपुर (मध्य प्रदेश)
- सारंगपुर युद्ध की जीत की याद में महाराणा कुम्भा ने चित्तौड़ में विजय स्तम्भ का निर्माण करवाया।
- युद्ध के कारण-
- (I) दोनों अपने राज्य का विस्तार करना चाहते थे।
- (II) महमूद खिलजी ने राणा मोकल के हत्यारों को शरण दी थी।
- (III) महाराणा कुम्भा महमूद खिलजी के विद्रोही उमर खाँ की सहायता कर रहा था तथा उमर खाँ ने सारंगपुर पर अधिकार कर लिया था।
नागौर का उत्तराधिकारी संघर्ष-
- महाराणा कुम्भा ने मुजाहिद खाँ के खिलाफ शम्स खाँ की सहायता की लेकिन कुछ समय पश्चात शम्स खाँ महाराणा कुम्भा के खिलाफ विद्रोह कर देता है।
- मुजाहिद खाँ नागौर के राजा फिरोज का भाई था।
- शम्स खाँ नागौर के राजा फिरोज को बेटा था।
- शम्स खाँ सहायता के लिए गुजरात के कुतुबद्दीन शाह के पास चला गया था।
- महाराणा कुम्भा ने शम्स खाँ तथा कुतुबद्दीन शाह दोनों को एक साथ हराया।
चांपानेर की संधि (1456 ई.)-
- स्थान- चांपानेर (गुजरात)
- कुतुबद्दीन शाह (गुजरात) + महमूद खिलजी (मालवा)
- संधि का उद्देश्य- गुजरात का राजा कुतुबद्दीन शाह तथा मालवा का राजा महमूद खिलजी दोनों साथ मिलकर महाराणा कुम्भा को हराकर मेवाड़ का बटवारा करना चाहते थे।
बदनौर का युद्ध (बदनौर, भीलवाड़ा 1457 ई.)-
- कुतुबद्दीन शाह (गुजरात) + महमूद खिलजी (मालवा) Vs महाराणा कुम्भा (मेवाड़) (✅)
- महाराणा कुम्भा ने मालवा तथा गुजरात की संयुक्त सेना को हराया।
- महाराणा कुम्भा ने सिरोही के सहसमल देवड़ा को भी हराया।
महाराणा कुम्भा की सांस्कृति उपलब्धियां-
- 1. स्थापत्य कला
- 2. साहित्य कला
1. स्थापत्य काल-
- महाराणा कुम्भा को राजस्थान की स्थापत्य कला का जनक कहा जाता है।
- (अ) विजय स्तम्भ
- (ब) किले
- (स) मंदिर
(अ) विजय स्तम्भ- (15वीं शताब्दी का)
- निर्माण- महाराणा कुम्भा
- स्थित- चित्तौड़ के किले में
- उच्चाई- 122 फीट
- चौड़ाई- 30 फीट
- समर्पित- विष्णु
- मंजिल- 9 मंजिला
- 8वीं मंजिल में कोई मूर्ति नहीं लगी हुई।
- 5वीं मंजिल में वास्तुकारों की मूर्तियां लगी है।
- वास्तुकार- (I) जैता (II) पूंजा (III) पोमा (IV) नापा
- तीसरी मंजिल में 9 बार अरबी भाषा में 'अल्लाह' शब्द लिखा हुआ है।
- महाराणा स्वरूप सिंह ने विजय स्तम्भ का पुनर्निर्माण करवाया।
- जेम्स टाॅड ने विजय स्तम्भ की तुलना कुतुब मीनार (दिल्ली) से की।
- इतिहासकार फर्ग्यूसन ने विजय स्तम्भ की तुलना टाॅर्जन टाॅवर (इटली की राजधानी रोम में) से की है।
- राजस्थान की पहली इमारत है जिस पर भारत सरकार के द्वारा 1949 में 1 रुपये का डाक टिकट जारी किया।
- विजय स्तम्भ का प्रयोग प्रतीक चिह्न के रूप में किया-
- (I) राजस्थान पुलिस
- (II) राजस्थान माध्यमिक शिक्षा बोर्ड
- (III) वीर सावरकर के क्रांतिकारी संगठन अभिनव भारत
- अन्य नाम या उपनाम-
- (I) कीर्ति स्तम्भ (विजय का प्रतीक होने के कारण)
- (II) विष्णु ध्वज (विष्णु को समर्पित होने के कारण)
- (III) गरुड ध्वज (विष्णु का वाहन गरुड होने के कारण)
- (IV) मूर्तियों का अजायबघर (सर्वाधिक मूर्तियां होने के कारण)
- (V) भारतीय मूर्तिकला का विश्वकोष (अनेक प्रकार की मूर्तियां होने के कारण)
स्वरूप शाही सिक्के-
- मेवाड़ में चलने वाले सिक्कों को स्वरूप शाही कहा जाता था।
- मेवाड़ के महाराणा स्वरूप सिंह ने मेवाड़ के सिक्कों पर दोस्ती लंदन लिखवाया था।
कीर्ति स्तम्भ प्रशस्ति (1460 ई.)-
- महाराणा कुम्भा के द्वारा लगवायी गई।
- कीर्ति स्तम्भ (विजय स्तम्भ) के पास चित्तौड़गढ़ के किले में लगी हुई है।
- लेखक- अत्रि भट्ट तथा महेश भट्ट
- महाराणा कुम्भा के विजय अभियान, साहित्य कला तथा उपाधियों की जानकारी मिलती है।
विशेष- कीर्ति स्तम्भ (12वीं शताब्दी का)-
- यह कीर्ति स्तम्भ महाराणा कुम्भा के समय का नहीं है।
- चित्तौड़गढ़ के किले में स्थित 7 मंजिला इमारत है।
- निर्माण- 12वीं शताब्दी में राजा कुमार सिंह के शासन काल में जैन व्यापारी जीजा शाह बघेरवाल ने करवाया।
- समर्पित- भगवान आदिनाथ (ऋभदेव)
- अन्य नाम- आदिनाथ स्तम्भ (आदिनाथ को समर्पित होने के कारण)
(ब) किले- कविराजा श्यामलदास जी की पुस्तक वीर विनोद के अनुसार महाराणा कुम्भा ने मेवाड़ के 84 किलों में से 34 किलो का निर्माण करवाया।
महाराणा कुम्भा के द्वारा बनवाये गये 34 किलों में से प्रमुख किले-
- (I) कुम्भलगढ़ का किला (राजसमंद, राजस्थान)
- (II) अचलगढ़ का किला (सिरोही, राजस्थान)
- (III) बसंतगढ़ का किला (सिरोही, राजस्थान)
- (IV) मचान दुर्ग (सिरोही, राजस्थान)
- (V) भोमट दुर्ग (उदयपुर, राजस्थान)
(I) कुम्भलगढ़ का किला (राजसमंद, राजस्थान)-
- अन्य नाम-
- (I) मेवाड़ की संकटकालीन राजधानी।
- (II) मेवाड़ तथा मारवाड़ की सीमा का प्रहरी
- वास्तुकार- मंडन
- किले में सबसे उपरी भाग को कटारगढ़ कहा जाता है।
- कटारगढ़ महाराणा कुम्भा का निजी आवास था।
- कटारगढ़ को मेवाड़ की आँख भी कहा जाता है क्योंकि कटारगढ़ से देखने पर पूरा मेवाड़ दिखाई देता है।
कुम्भलगढ़ प्रशस्ति (1460 ई.)-
- लेखक- महेश भट्ट
- महाराणा कुम्भा को धर्म एवं पवित्रता का अवतार तथा कर्ण व राजा भोज के समान दानवीर बताया गया है।
(II) अचलगढ़ का किला (सिरोही, राजस्थान)-
- 1451 ई. में अचलगढ़ के किले का पुनर्निर्माण करवाया।
- किले में महाराणा कुम्भा तथा उसके बेटे उदा की मूर्तियां लगी हुई है।
- किले में लगी महाराणा कुम्भा तथा उसके बेटे उदा की मूर्तियों को सावन-भादो कहा जाता है।
(III) बसंतगढ़ का किला (सिरोही, राजस्थान)-
(IV) मचान दुर्ग (सिरोही, राजस्थान)- दुर्ग को बनाने का मुख्य उद्देश्य 'मेर' जनजाति पर नियंत्रण करना था।
(V) भोमट दुर्ग (उदयपुर, राजस्थान)- दुर्ग को बनाने का मुख्य उद्देश्य 'भील' जनजाति पर नियंत्रण करना था।
(स) मंदिर-
- महाराणा कुम्भा के द्वारा बनवाये गये प्रमुख मंदिर-
- (I) कुम्भस्वामी मंदिर
- (II) कुंथुनाथ जैन मंदिर (देलवाड़ा, सिरोही, राजस्थान)
- (III) शांतिनाथ जैन मंदिर (चित्तौड़गढ़, राजस्थान)
- (IV) रणकपुर जैन मंदिर (पाली, राजस्थान)
(I) कुम्भस्वामी मंदिर-
- महाराणा कुम्भा के द्वारा कुम्भस्वामी का मंदिर राजस्थान में तीन स्थानों पर बनवाये गये थे जैसे-
- (अ) चित्तौड़गढ़ के किले में
- (ब) कुम्भलगढ़ के किले में
- (स) अचलगढ़ के किले में
(II) कुंथुनाथ जैन मंदिर (देलवाड़ा, सिरोही, राजस्थान)-
(III) शांतिनाथ जैन मंदिर (चित्तौड़गढ़, राजस्थान)-
- निर्माण- वेल्का भंडारी (कम्भा का कोषाध्यक्ष)
- अन्य नाम- शृंगार चंवरी मंदिर
(IV) रणकपुर जैन मंदिर (पाली, राजस्थान)-
- रणकपुर जैन मंदिरों का निर्माण जैन व्यापारी धरणकशाह के द्वारा करवाया गया।
- रणकपुर जैन मंदिरों के लिए महाराणा कुम्भा ने जैन व्यापारी धरणकशाह को 99 बीघा जमीन दान में दी।
- रणकपुर जैन मंदिरों में से एक प्रमुख मंदिर है जैसे-
- (अ) चौमुखा मंदिर (रणकपुर जैन मंदिर, पाली, राजस्थान)
(अ) चौमुखा मंदिर(रणकपुर जैन मंदिर, पाली, राजस्थान)-
- रणकपुर जैन मंदिरों में सबसे प्रमुख मंदिर चौमुखा मंदिर ही है।
- मूर्ति- भगवान आदिनाथ
- स्तम्भ- 1444 स्तम्भ
- वास्तुकार- देपाक
- अन्य नाम- स्तम्भों का अजायबघर कहा जाता है।
2. साहित्य कला-
- कुम्भा एक अच्छा संगीतज्ञ था।
- कुम्भा वीणा बजाया करता था।
- कुम्भा का संगीत गुरु सारंग व्यास था।
- (अ) पुस्तकें
- (ब) टीकाएं
- (स) नाटक
(अ) पुस्तकें- महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखी गई पुस्तके-
- (I) सुधा प्रबन्ध (संगीत से संबंधित)
- (II) कामराज रतिसार (संगीत से संबंधित, पुस्तक के 7 भाग)
- (III) संगीत सुधा (संगीत से संबंधित)
- (IV) संगीत मीमांसा (संगीत से संबंधित)
- (V) संगीत क्रम दीपिका (संगीत से संबंधित)
- (VI) संगीत राज (संगीत से संबंधित)-
- संगीत राज महाराणा कुम्भा की सबसे अच्छी पुस्तक मानी जाती है।
- संगीत राज पुस्तक के 5 भाग है जैसे-
- (I) पाठ्य रत्न कोष
- (II) गीत रत्न कोष
- (III) नृत्य रत्न कोष
- (IV) वाद्य रत्न कोष
- (V) रस रत्न कोष
(ब) टीकाएं-
- महाराणा कुम्भा की टीकाएं (संक्षिप्त या छोटा रूप)-
- महाराणा कुम्भा के द्वारा कुछ पुस्तकों को छोटे रूप (संक्षिप्त रूप) में लिखा था जिन्हे महाराणा कुम्भा की टीकाएं कहा जाता है। जैसे-
- (I) गीत गोविन्द (लेखक- जयदेव)
- (II) संगीत रत्नाकर (लेखक- सांरगधर)
- (III) चंडी शतक (लेखक- बाण भट्ट)
- (I) गीत गोविन्द- कुम्भा ने गीत गोविन्द पुस्तक को बाद में संक्षिप्त रूप (छोटा रूप) में लिखा जिसे रसिक प्रिया कहा जाता है।
- (II) संगीत रत्नाकर- कुम्भा ने सांरगधर के द्वारा लिखी गई पुस्तक संगीत रत्नाकर को बाद में संक्षिप्त रूप (छोटा रूप) में लिखा।
- (III) चंडी शतक- कुम्भा ने बाण भट्ट के द्वारा लिखी गई पुस्तक चंडी शतक को बाद में संक्षिप्त रूप (छोटा रूप) में लिखा।
(स) नाटक-
- महाराणा कुम्भा के द्वारा लिखे गये नाटक-
- (I) अतुल्य चातुरी- संस्कृत भाषा
- (II) मुरारि संगति- कनड भाषा
- (III) नन्दिनी वृति- मराठी भाषा
- (IV) रस नन्दिनी- मेवाड़ी भाषा
महाराणा कुम्भा के दरबारी विद्वान-
- 1. कान्ह व्यास (पुस्तक- एकलिंग महात्म्य, पहला भाग 'राजवर्णन' कुम्भा के द्वारा लिखा गया)
- 2. मेहाजी (पुस्तक- तीर्थमाला, 120 तीर्थों की जानकारी)
- 3. मंडन
- 4. नाथा (मंडन का भाई, पुस्तक- वास्तु मंजरी)
- 5. गोविंद
- 6. हीरानंद मुनि (महाराणा कुम्भा का गुरु)
- 7. तिला भट्ट
3. मंडन-
- मंडन एक वैद्य भी था।
- मंडन के द्वारा कुल 36 पुस्तके लिखी गई।
- मंडन के द्वारा लिखी गई पुस्तकों में से प्रमुख पुस्तकें-
- (I) वास्तुसार (वास्तु के बारे में जानकारी)
- (II) देवमूर्ति प्रकरण (देवताओं की मूर्तियों के बारे में जानकारी)
- (III) राजवल्लभ (राजाओं के महलों की जानकारी)
- (IV) रूप मंडन (मूर्तिकला की जानकारी)
- (V) कोदंड मंडन (धनुष निर्माण की जानकारी)
- (VI) वेद्य मंडन
5. गोविंद-
- गोविंद एक वैद्य भी था।
- गोविंद के द्वारा लिखी गई पुस्तकें-
- (I) द्वार दीपिका (दरवाजों के बारे में जानकारी)
- (II) उद्धार धोरिणी (पुनर्निर्माण से संबंधित)
- (III) कलानिधि (मंदिर के शिखर निर्माण के बारे में जानकारी, एकमात्र पुस्तक जिसमें मंदिर के शिखर निर्माण की जानकारी)
- (IV) सार समुच्चय (आयुर्वेदिक दवाइयों के बारे में जानकारी)
महारणा कुम्भा के जैन दरबारी विद्वान-
- 1. सुन्दर सूरी
- 2. सोमदेव सूरी
- 3. जयशेखर
- 4. भुवनकीर्ति
महारणा कुम्भा की उपाधियां-
- 1. हिन्दू सुरताण (मुस्लिम आक्रमणकारियों से भारत के हिन्दू धर्म की रक्षा करने के कारण)
- 2. अभिनव भरताचार्य या नव्य भरत (संगीत, नृत्य तथा नाटक की जानकारी होने के कारण)
- 3. वीणा वादन प्रवीणेन (अत्यधिक अच्छी वीणा बजाये जाने के कारण)
- 4. राणा रासौ (पुस्तकें लिखने तथा लिखवाये जाने के कारण)
- 5. हाल गुरु (पहाड़ों पर बनाये गये किलो के कारण)
- 6. चाप गुरु (अच्छा धनुष चलाये जाने के कारण)
- 7. आदि वराह (पहला विष्णु भक्त होने के कारण)
- 8. परम भागवत (विष्णु का सबसे बड़ा भक्त होने के कारण)
रमाबाई- (कुम्भा की बेटी)
- अपने पिता महाराणा कुम्भा की तरह संगीत में रुचि रखती थी।
- उपाधि- वीगीश्वरी (अर्थ-सरस्वती)
- जावर परगना दिया गया।
- जावर (उदयपुर) में रमास्वामी मंदिर का निर्माण करवाया।
9. रायमल (1473-1509 ई.)-
- पिता- महाराणा कुम्भा
- अपने भाई उदा को जावर तथा दाडिमपुर के युद्धों में हराया।
- मालव के गयासशाह को हराया।
- बापा रावल के द्वारा बनवाये गये एकलिंग मंदिर का वर्तमान स्वरूप रायमल के द्वारा बनवाया गया था।
- निर्माण- चित्तौड़ में अद्भुत शिव मंदिर का निर्माण करवाया।
- अद्भुद शिव मंदिर को अदबद जी मंदिर भी कहते हैं।
शृंगार कंवर-
- पति- रायमल
- पिता- जोधा (मारवाड़ राजा)
- निर्माण- धोसुंडी (चित्तौड़गढ़) में एक बावड़ी का निर्माण करवाया।
विशेष- धोसुंडी अभिलेख- (दूसरी शताब्दी का)
- राजस्थान का सबसे प्राचीनतम अभिलेख
- भागवत संप्रदाय की जानकारी मिलती है।
- इसके अनुसार गज वंश के राजा सर्वतात ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन करवाया।
पृथ्वीराज-
- पिता- रायमल
- रानी- तारा
- अन्य नाम- उडणा राजकुमार (तेजी से आक्रमण करने के कारण)
- रानी तारा के कारण अजमेर किले का नाम तारागढ़ पड़ा।
- छतरी- कुंभलगढ़ के किले में (12 खम्भों की छतरी)
जयमल-
- पिता- रायमल
- सोलंकियों के खिलाफ लड़ता हुआ मारा गया।
10. महाराणा सांगा (1509-1528 ई.)-
- पिता- रायमल
- राजसमंद के सेवन्त्री नामक गाँव में रुपनारायण मंदिर के पास बीदा जैतमालोत ने महाराणा सांगा की रक्षा की थी।
- श्रीनगर (अजमेर) के कर्मचन्द पंवार ने महाराणा सांगा को शरण दी।
- रायमल की मृत्यु के बाद महाराणा सांगा मेवाड़ का राजा बना।
- महाराणा सांगा के राजतिलक के समय दिल्ली का राजा सिकन्दर लोदी था।
- महाराणा सांगा के राजतिलक के समय मालवा का राजा नासिरशाह था।
- महाराणा सांगा के राजतिलक के समय गुजरात का राजा महमूद बेगड़ा था।
खातोली का युद्ध (खातोली, कोटा 1517 ई.)-
- महाराणा सांगा (✅) Vs इब्राहिम लोदी (दिल्ली) (❌)
बाड़ी का युद्ध (बाड़ी, धौलपुर, 1518 ई.)-
- महाराणा सांगा (✅) Vs इब्राहिम लोदी (दिल्ली) (❌)
गागरौण का युद्ध (गागरौण, झालावाड़ 1519 ई.)-
- महाराणा सांगा (✅) Vs महमूद खिलजी-II (मालवा) (❌)
- हरिदास चारण ने महमूद खिलजी-II को गिरफ्तार कर लिया।
- महमूद खिलजी-II को गिरफ्तार करने के उपलक्ष्य में महाराणा सांगा ने हरिदास चारण को 12 गाँव भेट में दिये थे।
- युद्ध के कारण-
- (I) दोनों अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे।
- (II) मेवाड़ तथा मालवा में लम्बे समय दुश्मनी चली आ रही थी।
- (III) महाराणा सांगा चंदेरी (मालवा) के मेदिनी राय की सहायता कर रहा था। मेदिनी राय महमूद खिलजी-II का विद्रोही था तथा महाराणा सांगा ने मेदिनी राय को झालावाड़ का गागरौण का किला दे दिया था।
ईडर का युद्ध (ईडर, गुजरात, 1520 ई.)-
- महाराणा सांगा (✅) Vs मुजफ्फर शाह-II (गुजरात) (❌)
- युद्ध के कारण-
- (I) दोनों अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे।
- (II) मेवाड़ तथा गुजरात में नागौर को लेकर लम्बे समय से दुश्मनी चली आ रही थी।
- (III) मुजफ्फर शाह-II महाराणा सांगा के खिलाफ महमूद खिलजी-II की सहायता कर रहा था।
- (IV) ईडर का उत्तराधिकारी संघर्ष अर्थात् ईडर के उत्तराधिकारी संघर्ष के लिए महाराणा सांगा रायमल की सहायता कर रहा था तथा मुजफ्फर शाह-II भारमल की सहायता कर रहा था।
बयाना का युद्ध (बयाना, भरतपुर, 16 फरवरी 1527 ई.)-
- महाराणा सांगा (✅) Vs बाबर (दिल्ली) (❌)
- युद्ध के समय बयाना का किला (भरतपुर) मेंहदी ख्वाजा के पास था।
- युद्ध में बाबर का सेनापति सुल्तान मिर्जा था।
खानवा का यु्द्ध (खानवा, भरतपुर, 17 मार्च 1527 ई.)-
- महाराणा सांगा (❌) Vs बाबर (दिल्ली) (✅)
- कविराज श्यामलदास जी की पुस्तक वीर विनोद के अनुसार खानवा का युद्ध 16 मार्च 1527 को हुआ था।
- युद्ध से पहले बाबर ने जिहाद की घोषणा की तथा मुस्लिम व्यापारियों का तमगा कर हटा दिया था।
- युद्ध से पहले बाबर ने शराब न पीने की प्रतिज्ञा (कस्म) ली।
- सांगा ने राजस्थान के लगभग सभी राजाओं को पत्र लिखे तथा सहायता की मांग की जैसे-
- 1. आमेर- पृथ्वीराज
- 2. मारवाड़- मालदेव (राजा- गांगा)
- 3. बीकानेर- कल्याणमल (राजा- जैतसी)
- 4. मेडता- वीरमदेव
- 5. ईडर- भारमल
- 6. चंदेरी- मेदिनी राय
- 7. सिरोही- अखैराज देवड़ा
- 8. वागड़- उदयसिंह
- 9. देवलिया (प्रतापगढ़)- बाघसिंह
- 10. सलूम्बर- रतन सिंह चूंडावत
- 11. सादड़ी (चित्तौड़गढ़)- झाला अज्जा
- 12. मेवात (अलवर)- हसन खाँ मेवाती
- युद्ध में घायल होने के कारण सांगा को युद्ध भूमि छोड़कर जाना पड़ा अतः सादड़ी के झाला अज्जा ने युद्ध का नेतृत्व किया था।
- युद्ध की जीत के बाद बाबर ने गाजी की उपाधि धारण की।
- पाती परवन- राजा के द्वारा युद्ध में अन्य राजाओं को सहायता के लिए पत्र भेजने की प्रक्रिया को पाती परवन कहा जाता है।
- युद्ध के कारण-
- 1. दोनों अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे।
- 2. महाराणा सांगा ने बयाना के किले पर कब्जा कर लिया था।
- 3. महाराणा सांगा ने दिल्ली के आसपास के 200 गाँवों पर अधिकार कर लिया था।
- 4. महाराणा सांगा अफगानों के नेता महमूद लोदी (इब्राहिम लोदी) के साथ गठबंधन बना रहा था।
- 5. बाबर ने महाराणा सांगा पर वादाखिलाफी का आरोप लगाया था।
- युद्ध में महाराणा सांगा की हार के कारण-
- 1. महाराणा सांगा की सेना में एकता की कमी थी तथा सेना अलग-अलग सेनापतियों के नेतृत्व में युद्ध लड़ रही थी।
- 2. बयाना युद्ध के बाद महाराणा सांगा ने बाबर को युद्ध की तैयारी का प्रयाप्त समय दे दिया था।
- 3. घायल होने के बावजूद भी महाराणा सांगा खुद युद्ध के मैदान में चला गया था।
- 4. महाराणा सांगा के कुछ साथियों ने खानवा के युद्ध में महाराणा सांगा के साथ विश्वासघात किया तथा युद्ध के बीच में ही बाबर से मिल गये थे। जैसे रायसीन (मध्य प्रदेश) का सलहदी तंवर तथा नागौर के खानजादे मुस्लिम आदि।
- 5. बाबर का तोपखाना।
- 6. बाबर की तुलगुमा युद्ध पद्धति।
- 7. बाबर की सेना ने घोड़ों का प्रयोग किया जबकि महाराणा सांगा की सेना ने हाथियों का प्रयोग किया था।
- 8. बाबर की सेना ने महाराणा सांगा की सेना की अपेक्षा हल्के हथियारों का प्रयोग किया था।
- युद्ध में बाबर की जीत के कारण-
- 1. बाबर का तोपखाना।
- 2. बाबर की तुलगुमा युद्ध पद्धति।
- 3. बाबर की सेना ने घोड़ों का प्रयोग किया था जबकि महाराणा सांगा की सेना ने हाथियों का प्रयोग किया था।
- 4. बाबर की सेना ने महाराणा सांगा की सेना की अपेक्षा हल्के हथियारों का प्रयोग किया था।
- युद्ध के महत्त्व या प्रभाव-
- 1. अफागानों तथा राजपूतों को हराने के बाद बाबर के लिए भारत में राज करना आसान हो गया था।
- 2. खानवा का युद्ध अंतिम युद्ध था जिसमें राजस्थान के राजपूत राजओं ने एकता दिखायी थी।
- 3. सांगा अंतिम राजपूत राजा था जिसने दिल्ली को सीधे चुनौती दी थी।
- 4. सांगा के बाद बड़े हिन्दू राजा नहीं बचे थे जिससे हिन्दू कला एवं संस्कृति को नुकसान हुआ था।
- 5. खानवा के युद्ध ने राजपूतों की सामरिक कमजोरियों को उजागर कर दिया था।
- 6. खानवा के युद्ध ने मुगलों की राजपूतों के प्रति भविष्य की नीति का निर्धारण किया था तथा बाद में अकबर ने संघर्ष के स्थान पर सहयोग की नीति अपनायी थी।
- सांगा की उपाधियां-
- 1. हिन्दूपत
- 2. सेनिकों का भग्नावशेष
- बाबरनामा के अनुसार महाराणा सांगा के दरबार में 7 राजा, 9 राव तथा 104 सरदार थे।
1. बसवा (दौसा)- सांगा का ईलाज किया गया।
2. ईरिच (उत्तर प्रदेश)- सांगा को जहर दिया गया।
3. कालपी (उत्तर प्रदेश)- 30 जनवरी 1528 को सांगा की मृत्यु हुई थी।
4. मांडलगढ़ (भीलवाड़ा)- भीलवाड़ा के मांडलगढ़ में सांगा की छतरी है।
तुलगुमा युद्ध पद्धति- तुलगुमा युद्ध पद्धति में सेना के द्वारा दुश्मन की सेना पर तीन तरफ से आक्रमण किया जाता है अतः आक्रमण करने की इसी पद्धति को तुलगुमा युद्ध पद्धति कहा जाता है।
भोजराज-
- पिता- महाराणा सांगा
- रानी- मीराबाई
रतनसिंह-
- पिता- महाराणा सांगा
- सांगा की मृत्यु के बाद मेवाड़ का राजा रतनसिंह को बनाया गया।
- बूंदी के राजा सूरजमल के खिलाफ लड़ता हुआ मारा गया।
11. विक्रमादित्य (1531-1536 ई.)-
- पिता- महाराणा सांगा
- माता- कर्मावती
- संरक्षिका- कर्मावती
- 1533 ई. में बहादुर शाह (गुजरात) ने मेवाड़ पर आक्रमण कर दिया।
- रानी कर्मावती ने बहादुर शाह के साथ संधि कर ली तथा बहादुर शाह को रणथम्भौर का किला दे दिया।
- 1534-35 ई. में बहादुर शाह ने मेवाड़ पर पुनः आक्रमण कर दिया।
- बहादुर शाह से युद्ध लड़ने के लिए रानी कर्मावती ने मुगल बादशाह हुमायु के पास राखी भेजी तथा सहायता की मांग की।
चित्तौड़ का दूसरा साका (1535 ई.)-
- रानी कर्मावती के नेतृत्व में जौहर किया गया।
- भीलवाड़ा से प्राप्त पुर ताम्रपत्र से रानी कर्मावती के जौहर की जानकारी मिलती है।
- देवलिया (वर्तमान प्रतापगढ़) के बाघसिंह के नेतृत्व में केसरिया किया गया।
- बाघसिंह को देवलिया दीवान भी कहते हैं।
- बाघसिंह की छतरी- चित्तौड़गढ़ किले में पाडुपोल (दरवाजा) के पास स्थित है।
- बनवीर को मेवाड़ का प्रशासक बनाया गया।
- बनवीर उडणा राजकुमार पृथ्वीराज की दासी का बेटा था।
- बनवीर ने विक्रमादित्य की हत्या कर दी।
- पन्ना धाय ने अपने बेटे चन्दन का बलिदान देकर महाराणा सांगा के बेटे उदयसिंह को बचाया था।
- आशा देवपुरा ने कम्भलगढ़ के किले में पन्ना धाय तथा उदयसिंह को शरण दी।
12. उदय सिंह (1537-1572 ई.)-
- स्थापना- 1559 ई. उदयपुर की स्थापना की।
- निर्माण- उदयपुर में उदयसागर झील तथा मोती मगरी महल का निर्माण करवाया।
- छतरी- गोगुन्दा, उदयपुर
- 1567-68 ई. में अकबर ने मेवाड़ पर आक्रमण किया।
- उदयसिंह गिर्वा की पहाड़ियों (उदयपुर) में चला गया।
- जयमल तथा पत्ता ने चित्तौड़ के किले का मोर्चा संभाला।
- जयमल मेड़ता (नागौर) का राजा था। तथा 1562 ई. में अकबर ने मेड़ता पर अधिकार कर लिया था।
- पत्ता का वास्तविक नाम फतेह सिंह चूंडावत था।
- पत्ता आमेट का सामन्त था।
- आमेट मेवाड़ रियासत का प्रथम श्रेणी ठीकाना था।
- पत्ता की छतरी- चित्तौड़गढ़ के किले में रामपोल (दरवाजा) के पास स्थित है।
मावली का युद्ध (मावली, उदयपुर, 1540 ई.)-
- उदयसिंह (✅) Vs बनवीर (❌)
चित्तौड़ का तीसरा साका (1568 ई.)-
- फूल कंवर के नेतृत्व में जौहर किया गया।
- फूल कंवर पत्ता की रानी तथा जयमल की बहन थी।
- जयमल तथा पत्ता के नेतृत्व में केसरियां किया गया।
- जयमल ने कल्ला राठौड़ के कंधो पर बैठकर युद्ध किया इसीलिए कल्ला राठौड़ को चार हाथों वाला देवता कहते हैं।
- जयमल तथा कल्ला राठौड़ की छतरियां चित्तौड़गढ़ के किले में हनुमानपोल से भेरवपोल के बीच स्थित है।
- 25 फरवरी 1568 ई. को अकबर ने चित्तौड़ पर अधिकार कर लिया।
- चित्तौड़ पर अधिकार करने के बाद अकबर ने चित्तौड़ में 30.000 लोगों का कत्लेआम करवाया।
- चित्तौड़ विजय के बाद अकबर ने एलची नामक सिक्का चलाया।
- एलची का अर्थ है- संदेश वाहक
- अकबर ने जयमल तथा पत्ता की बहादुरी से प्रभावित होकर दोनों की मूर्तियां आगरा के किले में लगवायी।
- आगरा के किले में लगी जयमल तथा पत्ता की मूर्तियों को औरंगजेब ने तुड़वा दिया था।
- फ्रांसीसी यात्री बर्नियर ने आगरा के किले में लगी जयमल तथा पत्ता की मूर्तियों का वर्णन अपनी पुस्तक 'Travels In Mughal Empire' में किया था।
- बीकानेर के जूनागढ़ किले में जयमल तथा पत्ता की मूर्तियां लगी हुई है।
- 28 फरवरी 1572 ई. को गोगुन्दा (उदयपुर) में होली के दिन उदयसिंह की मृत्यु हो गयी।
- संग्राम- अकबर की बंदूक का नाम
डाक टिकट-
- केन्द्रीय संचार राज्य मंत्री देवुसिंह चौहान (भारत सरकार) के द्वारा राव जयमल राठौड़ की 515वीं जयंती के अवसर पर राव जयमल राठौड़ के समान में राव जयमल राठौड़ पर 17 सितम्बर 2021 को डाक टिकट जारी किया था।
13. महाराणा प्रताप (1572-1597 ई.)-
- जन्म- 9 मई 1540 को कुम्भलगढ़ के किले में
- मृत्यु- 19 जनवरी 1597 ई. को चावंड में
- पिता- उदयसिंह
- माता- जयवन्ता बाई सोनगरा
- बचपन का नाम- कीका
- रानी- अजबदे पंवार
- घोड़ा- चेतक
- चेतक की छतरी- बलीचा (हल्दीघाट के पास, राजसमंद)
- छतरी- बांडोली (चावंड के पास उदयपुर)
- कुल 25 वर्षों तक शासक किया।
- उदयसिंह ने अपने बड़े बेटे महाराणा प्रताप को राजा नहीं बनाया था बल्कि अपने छोटे बेटे जगमाल को राजा बनाया था।
- चावंड (उदयपुर) को अपनी राजधानी बनाया।
- चावंड को राजधानी बनाने से पहले आवरगढ़ (उदयपुर) को अपनी अस्थाई राजधानी बनाया।
- शस्त्रागार- मायरा की गुफा (उदयपुर)
महाराणा प्रताप का राजतिलक-
- सलूम्बर ठिकाने के कृष्णदास चूंडावत ने गोगुन्दा में प्रताप का राजतिलक किया।
- कुम्भलगढ़ में प्रताप का राजतिलक समारोह आयोजित किया गया।
- प्रताप के राजतिलक समारोह में मारवाड़ के चन्द्रसेन ने भी भाग लिया।
जगमाल-
- महाराणा प्रताप के राजतिलक के बाद जगमाल अकबर के पास चला गया।
- अकबर ने जगमाल को झालावाड़ का जहाजपुर परगना दे दिया।
- कुछ समय बाद अकबर ने जगमाल को सिरोही का आधा भाग दे दिया।
- दत्ताणी के युद्ध में लड़ता हुआ मारा गया।
महाराणा प्रताप से संधि करने या महाराणा प्रताप को समझाने के लिए अकबर ने चार दुत भेजे। जैसे-
- 1. जलाल खाँ कोरची-
- 1572 ई. में प्रताप से संधि करने के लिए जलाल खाँ कोरची को भेजा।
- जलाल खाँ कोरची के समझाने पर प्रताप ने अकबर से संधि करने से मना कर दिया।
- 2. मानसिंह- (आमेर का राजकुमार, भगवनन्तदास का बेटा)
- 1573 ई. में प्रताप से संधि करने के लिए मानसिंह को भेजा।
- संधि करने आये मानसिंह से प्रताप की तरफ से प्रताप का बेटा अमर सिंह मिला था।
- मानसिंह के समझाने पर अमर सिंह ने अकबर से संधि करने से मना कर दिया। अर्थात् प्रताप ने अकबर से संधि करने से मना कर दिया।
- 3. भगवनन्तदास- (आमेर का राजा)
- 1573 ई. में प्रताप से संधि करने के लिए भगवनन्तदास को भेजा।
- भगवनन्तदास के समझाने पर प्रताप ने अकबर से संधि करने से मना कर दिया।
- 4. टोडरमल-
- 1573 ई. में प्रताप से संधि करने के लिए टोडरमल को भेजा।
- टोडरमल के समझाने पर प्रताप ने अकबर ने संधि करने से मना कर दिया।
हल्दी घाटी का युद्ध (हल्दी घाटी, राजसमंद, 18 जून 1576 ई.)-
- महाराणा प्रताप Vs अकबर
- गोपीनाथ शर्मा के अनुसार युद्ध 21 जून 1576 को लड़ा गया।
- राजसमंद जिले में गोगुन्दा तथा खमनौर की पहाड़ियों के बीच हल्दी घाटी का मैदान स्थित है।
- मिहतर खाँ नामक मुगल सेनिक ने युद्ध में अकबर के आने की झुठी सुचना दी।
- चेतक के घायल होने के कारण प्रताप को युद्ध भूमि से बाहर जाना पड़ा।
- प्रताप के युद्ध भूमि से बाहर जाने पर झाला बीदा ने युद्ध का नेतृत्व किया।
- अकबर का सेनापति मानसिंह प्रताप को अकबर की अधिनता स्वीकार करवाने में असफल रहा।
- मानसिंह तथा आसफ खाँ प्रताप को अकबर की अधिनता स्वीकार करवाने में असफल हुए इसी कारण से अकबर ने मानसिंह तथा आसफ खाँ का दरबार में प्रवेश बंद कर दिया।
- युद्ध में अकबर के सेनापति-
- 1. मानसिंह- (पहली बार मानसिंह को किसी युद्ध में सेनापति बनाया गया था। अर्थात् पहली बार स्वतंत्र सेनापति बनाया गया था।)
- 2. आसफ खाँ
- युद्ध में प्रताप के सेनापति-
- 1. रामशाह तोमर (ग्वानियर, मध्य प्रदेश)
- 2. हाकिम खाँ सूर (अफगानी सेना लेकर आये)
- 3. कृष्णदास चूंडावत (सलूम्बर से)
- 4. राणा पूंजा (भील सेना लेकर आये)
हल्दीघाटी युद्ध में सैन्य शिविर-
- मुगल सेना ने अपना सैन्य शिविर मोलेला (राजसमंद) में लगाया।
- मेवाड़ सेना ने अपना सैन्य शिविर लोसिंग (राजसमंद) में लगाया।
बदायूंनी-
- एकमात्र इतिहासकार जिसने हल्दीघाटी के युद्ध में भाग लिया।
- युद्ध में अकबर की तरफ से आया था।
- इसके अनुसार हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना के पास 5000 सेनिक थे जबकि मेवाड़ सेना के पास 3000 सेनिक थे।
- पुस्तक- मुन्तखब-उत-तवारीख (हल्दीघाटी के युद्ध का वर्णन)
श्यामलदास जी- इतिहासकार श्यामलदास जी के अनुसार हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना के पास 80,000 सैनिक थे जबकि मेवाड़ सेना के पास 20,000 सैनिक थे।
हल्दीघाटी युद्ध में मुगल सेना के प्रमुख हाथी-
- हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर की सेना के पास दो प्रमुख हाथी थे जैसे-
- 1. मरदाना
- 2. गजमुक्ता
हल्दीघाटी युद्ध में मेवाड़ के प्रमुख हाथी
- हल्दीघाटी के युद्ध में महाराणा प्रताप की सेना के पास दो प्रमुख हाथी थे जैसे-
- 1. लूणा
- 2. रामप्रसाद
- रामप्रसाद को अकबर की सेना अपने साथ ले जाती है।
- अकबर रामप्रसाद का नाम बदलकर पीरप्रसाद कर देता है।
इतिहासकारों के अनुसार हल्दीघाटी युद्ध के अन्य नाम-
- 1. गोगुन्दा का युद्ध (बदायूंनी ने कहा)
- 2. खमनौर का युद्ध (अबुल फजल ने कहा)
- 3. बादशाह बाग का युद्ध (आदर्शीलाल श्रीवास्तव ने कहा)
- 4. मेवाड़ का थर्मोपोली (कर्नल जेम्स टोड ने हल्दीघाटी युद्ध की तुलना यूरोप के थर्मोपोली युद्ध से करते हुए कहा)
हल्दीघाटी युद्ध के महत्व या परिणाम या प्रभाव-
- 1. हल्दीघाटी का युद्ध अकबर की साम्राज्यवादी शक्ति एवं महाराणा प्रताप की प्रादेशिक स्वतंत्रता के बीच का संघर्ष था।
- 2. हल्दीघाटी के युद्ध में मुगलों की अजेयता की छवि को तोड़ दिया था।
- 3. कम संसाधनों के बावजुद महाराणा प्रताप ने हल्दीघाटी के युद्ध में अकबर का सामना किया था। जिससे मेवाड़ की जनता में आशा व नैतिकता का संचार हुआ था।
- 4. हल्दीघाटी का युद्ध मेवाड़ की जनता तथा जनजातियों में राष्ट्रवादी भावना का संचार करता है।
- 5. हल्दीघाटी का युद्ध आज भी राष्ट्रवादियों के लिए प्रेरणा स्रोत का कार्य करता है।
अकबर का मेवाड़ आक्रमण- 1576
- अकटूबर 1576 ई. में अकबर स्वयम् मेवाड़ पर आक्रमण करता है।
- इस आक्रमण के बाद अकबर उदयपुर पर अधिकार कर लेता है तथा अकबर ने उदयपुर का नाम बदलकर मुहम्मदाबाद कर दिया था।
- अकबर ने उदयपुर पर अधिकार कर जगन्नाथ कछवाह तथा सैय्यद फखरूद्दीन को उदयपुर सौंप देता है।
मुगल सेनापति शाहबाज खाँ ने कुम्भलगढ़ पर तीन बार आक्रमण किया था। जैसे-
- 1. 1577 ई.
- 2. 1578 ई.
- 3. 1579 ई.
शेरपुर घटना (1580 ई.)- प्रताप के बेटे अमर सिंह ने मुगल सेनापति अब्दुल रहीम की बेगमों को गिरफ्तार कर लिया था लेकिन प्रताप ने अब्दुल रहीम की बेगमों को ससम्मान वापस पहुँचाया था।
दिवेर का युद्ध (दिवेर, राजसमंद 1582 ई.)-
- युद्ध में दशहरे के दिन महाराणा प्रताप ने मुगल सेना को हराया।
- प्रताप के बेटे अमर सिंह ने मुगल सेनापति सुल्तान खाँ को मार दिया।
- बासवाड़ा, प्रतापगढ़ तथा ईडर रियासतों नें दिवेर के युद्ध में मेवाड़ का साथ दिया।
- कर्नल जेम्स टाॅड ने दिवेर के युद्ध को मेवाड़ का मैराथन कहा है। क्योंकि कर्नल जेम्स टाॅड ने दिवेर के युद्ध की तुलना यूरोप के मैराथन युद्ध से की है।
जगन्नाथ कछवाह-
- 1585 ई. में अकबर की तरफ से मेवाड़ पर आक्रमण किया लेकिन सफलता नहीं मिली।
- जगन्नाथ कछवाह के द्वारा मेवाड़ पर किया गया आक्रमण अकबर का महाराणा प्रताप पर अंतिम आक्रमण था।
मालपुरा (टोंक)- महाराणा प्रताप ने आमेर रियासत पर आक्रमण किया तथा मालपुरा पर अधिकार कर लिया।
चित्तौड़गढ़ तथा मांडलगढ़- चित्तौड़गढ़ तथा मांडलगढ़ को छोड़कर महाराणा प्रताप ने सम्पूर्ण मेवाड़ पर पुनः अधिकार कर लिया था।
महाराणा प्रताप की सांस्कृतिक उपलब्धियां-
- मालपुरा (टोंक) में नीलकंठ महादेव मंदिर (शिव) तथा झालरा तालाब का निर्माण करवाया।
- चावंड में चामुंडा माता मंदिर, महल तथा बावड़ी का निर्माण करवाया।
- प्रताप के शासक काल में चावंड से मेवाड़ चित्रकला की शुरुआत हुई।
- प्रताप के शासक काल में मेवाड़ का प्रमुख चित्रकार नासिरूद्दीन था।
महाराणा प्रताप के दरबारी विद्वान-
- 1. चक्रपाणि मिश्र
- 2. मेहरत्न सूरि (पुस्तक- गौरा बादल पद्मिनी चौपाई, चित्तौड़ के पहले साके की जानकारी)
- 3. सादुलनाथ त्रिवेदी- प्रताप ने सादुलनाथ त्रिवेदी को मंडेर जागीर (हल्दीघाटी के पास, राजसमंद) दी जिसकी जानकारी 1588 ई. के उदयपुर अभिलेख से मिलती है।
- 4. माला सांदू (चारण कवि)
- 5. रामा सांदू (चारण कवि)
1. चक्रपाणि मिश्र-
- चक्रपाणि मिश्र ने निम्नलिखित पुस्तकें लिखी थी। जैसे-
- (I) राज्याभिषेक (विधिवत रूप से राज्याभिषेक करने की जानकारी)
- (II) मुहुर्तमाला (मुहुर्त से संबंधित जानकारी)
- (III) विश्व वल्लभ (उद्यान (गारडन) विज्ञान की जानकारी)
भामाशाह तथा ताराचन्द-
- भामाशाह तथा ताराचन्द ने गुजरात के पास चूलिया नामक गाँव में महाराणा प्रताप से मुलाकात की तथा प्रताप को आर्थिक सहायता दी।
- प्रताप को दी गई सहायता से प्रताप 25000 सैनिकों को 12 वर्ष तक रख सकता था।
- भामाशाह को मेवाड़ का उद्धारक कहते हैं।
- प्रताप ने भामाशाह को अपना प्रधानमंत्री बनाया।
14. महाराणा अमर सिंह- I (1597-1620 ई.)-
- पिता- महाराणा प्रताप
- बेटा- कर्णसिंह
- अमर सिंह ने मुगल मेवाड़ संधि युवराज कर्णसिंह के दबाव में की।
- अमर सिंह मुगल मेवाड़ संधि से बहुत निराश था तथा राजसमंद के नौ चौकी नामक स्थान पर जाकर रहने लगा था।
- बाद में नौ चौकी नामक स्थान पर राजसमंद झील का निर्माण करवाया।
- मेवाड़ की तरफ से हरिदास तथा शुभकरण मुगल मेवाड़ संधि का प्रस्ताव लेकर मुगल दरबार में गये थे।
- मुगलों की तरफ से मुगल बादशाह जहाँगीर के बेटे खुर्रम (शाहजहाँ) ने मुगल मेवाड़ संधि की थी।
- राजकुमार कर्णसिंह मुगल बादशाह जहाँगीर के दरबार में गया था।
- जहाँगीर ने कर्णसिंह को 5000 का मनसबदार बनाया।
- जहाँगीर ने अमर सिंह तथा कर्णसिंह की मूर्तियां आगरा के किले में लगवायी।
मुगल मेवाड़ संधि (5 फरवरी 1615 ई.)-
- जहाँगीर (मुगल) + अमर सिंह (मेवाड़)
- संधि की शर्ते-
- 1. मेवाड़ का राजा या राणा मुगल दरबार में नहीं जायेगा।
- 2. मेवाड़ का राजकुमार मेवाड़ के राजा के स्थान पर मुगल दरबार में शामिल होगा।
- 3. मेवाड़ की तरफ से मुगलों को 1000 घुड़सवार सेनिकों की सहायता देगा।
- 4. मुगल के द्वारा मेवाड़ को चित्तौड़ का किला वापस दिया जायेगा लेकिन मेवाड़ चित्तौड़ के किले का पुनर्निर्माण नहीं करवा सकता है।
- 5. मेवाड़ के द्वारा मुगलों से वैवाहिक संबंधि स्थापित नहीं किये जायेंगे।
- संधि का महत्व या प्रभाव-
- 1. महाराणा सांगा तथा महाराणा प्रताप के समय से चली आ रही स्वतंत्रता की भावना को आघात लगा था।
- 2. युद्ध बंद होने से मेवाड़ में शांति व्यवस्था सुनिश्चित हुई जिसके कारण कलात्मक गतिविधियों को बढ़ावा मिला था।
- संधि के जानकारी के स्रोत-
- 1. जहाँगीर के पुष्कर महल का अभिलेख (1615 ई.)
- 2. शाहजहाँनी मस्जिद का अभिलेख (1637 ई.)
- 3. सर टाॅमस रो (थाॅमस रो)- इसके अनुसार "मुगल बादशाह ने मेवाड़ के राणा को बुद्धि से अधिन किया था ताकत से नहीं"
1. जहाँगीर के पुष्कर महल का अभिलेख (1615 ई.)-
- पुष्कर (अजमेर) से प्राप्त हुआ।
- जहाँगीर ने पुष्कर में महल का निर्माण करवाया तथा महल के बाहर अभिलेख लगवाया जिसे पुष्कर महल का अभिलेख कहते हैं।
2. शाहजहाँनी मस्जिद का अभिलेख (1637 ई.)-
- अजमेर से प्राप्त।
- शाहजहाँ ने अजमेर में मस्जिद का निर्माण करवाया जिसे शाहजहाँनी मस्जिद कहते हैं। तथा इस मस्जिद के बाहर अभिलेख लगवाया जिसे शाहजहाँनी मस्जिद का अभिलेख कहते हैं।
15. महाराणा कर्णसिंह (1620- 1628 ई.)-
- पिता- महाराणा अमर सिंह- I
- उदयपुर में कर्णविलास तथा दिलखुश महलों का निर्माण करवाया।
- उदयपुर की पिछोला झील में जगमंदिर महल का निर्माण शुरू करवाया।
- विद्रौह या उत्तराधिकारी संघर्ष के दौरान खुर्रम (शाहजहाँ) उदयपुर के जगमंदिर महल में रुका था।
16. महाराणा जगत सिंह- I (1628- 1651 ई.)-
- उदयपुर की पिछोला झील में महाराणा कर्णसिंह के द्वारा शुरू करवाया गया जगमंदिर महल का निर्माण पुरा करवाया।
- अपनी दानवीरता के लिए प्रसिद्ध था।
जगदीश मंदिर- (उदयपुर, राजस्थान)
- महाराणा जगत सिंह ने उदयपुर में जगदीश मंदिर का निर्माण करवाया।
- अन्य नाम-
- (I) जगन्नाथ राय मंदिर
- (II) सपने में बना मंदिर
- शैली- नागर शैली की पंचायतन शैली में बना है।
- वास्तुकार- 1. अर्जुन, 2. भाणा (भाण), 3. मुकुन्द
जगन्नाथ राय प्रशस्ति-
- उदयपुर के जगन्नाथ राय मंदिर में लगवायी गई थी।
- लेखक- कृष्ण भट्ट
- जानकारी- हल्दीघाटी युद्ध की
नौजू बाई का मंदिर-
- महाराणा जगत सिंह की धाय माँ।
- महाराणा जगत सिंह ने उदयपुर में नौजू बाई के लिए मंदिर बनवाया था जिसे नौजू बाई का मंदिर (विष्णु) भी कहते हैं।
17. महाराणा राजसिंह (1652- 1680 ई.)-
- मुगल बादशाह शाहजहाँ के खिलाफ आक्रामक नीति अपनायी तथा चित्तौड़ के किले का पुनर्निर्माण शुरू करवा दिया।
- मुगलों के बीच उत्तराधिकार संघर्ष में औरंगजेब की सहायता की।
- मुगलों के बीच उत्तराधिकारी संघर्ष के दौरान टीका दौड़ का आयोजन करवाया तथा कई मुगल क्षेत्रों पर अधिकार कर लिया।
- औरंगजेब के द्वारा लगाये गये जजिया कर का विरोध किया।
- औरंगजेब के खिलाफ मारवाड़ के राजा अजीत सिंह की सहायता की थी। जिसे राठौड़ सिसोदिया गठबंधन कहा जाता है।
- औरंगजेब के खिलाफ हिन्दू देवी देवताओं की मूर्तियां बचायी थी।
- औरंगजेब के खिलाफ हिन्दू राजकुमारियों की रक्षा की जैसे- रूपनगढ़ (अजमेर) की राजकुमारी चारूमती की रक्षा की।
उपाधियां-
1. विजयकटकातु (कटक का अर्थ- सेना)
- 2. हाइड्रोलिक रूलर
टीका दौड़-
- दशहरे के दिन शुरू की जाती।
- हथियारों की पूजा की जाती थी तथा आस पास के क्षेत्र में युद्ध किये जाते थे।
सहल कंवर-
- पति- सलूम्बर (उदयपुर) का सामन्त रावत रतनसिंह चूण्डावत की हाडी रानी।
- पिता- संग्रामसिंह (बूँदी)
- अपने पति रावत रतनसिंह चूण्डावत के निशानी मांगने पर अपना सर काट कर दे दिया।
- हाडी रानी (सहल कंवर) के बलिदान पर मेघराज मुकुल ने सैनाणी नामक कविता लिखी।
- सैनाणी का अर्थ- निशीनी
महाराणा राजसिंह की सांस्कृतिक उपलब्धियां-
- 1. मंदिर
- 2. जल स्रोत
1. मंदिर-
- महाराणा राजसिंह के द्वारा बनावाये गये मंदिर।-
- (I) श्रीनाथ मंदिर (सिहाड/ नाथद्वारा, राजसमंद)
- (II) द्वारिकाधीश मंदिर (कांकरोली, राजसमंद)
- (III) अम्बा माता मंदिर (उदयपुर)
(I) श्रीनाथ मंदिर (सिहाड़/ नाथद्वारास, राजसमंद)-
- नाथद्वारा का पुराना नाम- सिहाड
- 1672 ई. में गोवन्द दास तथा दामोदर दास श्रीनाथ जी की मूर्ति मथुरा से लेकर आये थे।
2. जल स्रोत-
- (I) त्रिमुखी बावड़ी (उदयपुर)
- (II) जाना सागर तालाब (उदयपुर)
- (III) राजसमंद झील (राजसमंद)
(I) त्रिमुखी बावड़ी (उदयपुर)-
- अन्य नाम- जया बावड़ी
- निर्माण- महाराणा राजसिंह की रानी रामरसदे ने करवाया।
(II) जाना सागर तालाब (उदयपुर)-
- निर्माण- महाराणा राजसिंह की माता जानादे राठौड़ ने करवाया।
(III) राजसमंद झील (राजसमंद)-
- निर्माण- महाराणा राजसिंह के द्वारा करवाया गया।
- निर्माण का उद्देश्य- अकाल राहत कार्यों के लिए
- निर्माण वर्ष- 1662 ई. से 1676 ई. तक (लगभग 14 वर्ष)
महाराणा राजसिंह के दरबारी विद्वान-
- 1. किशोर दास (पुस्तक- राज प्रकास)
- 2. सदाशिव भट्ट (पुस्तक- राज रत्नाकर)
- 3. कवि मान (पुस्तक- राजविलास)
- 4. रणछोड़ भट्ट तैलंग
- 5. गिरधर आसिया (पुस्तक- सगत सिघ रासौ, महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह की जानकारी)
- 6. कल्याणदास- (पुस्तक- गुण गोविन्द)
4. रणछोड़ भट्ट तैलंग-
- पुस्तकें-
- (I) राज प्रशस्ति
- (II) अमर काव्य वंशावली (महारणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह तथा घोड़े चेतक की जानकारी मिलती है।)
(I) राज प्रशस्ति-
- स्थित- नौ चौकी (राजसमंद झील)
- भाषा- संस्कृत (25 पत्थरों पर लिखी गई)
- राज प्रशस्ति में निम्नलिखित जानकारियां मिलती है-
- (A) बापा रावल से लेकर महाराणा राजसिंह तक मेवाड़ के राजाओं की उपलब्धियां मिलती है।
- (B) हल्दीघाटी के युद्ध की जानकारी मिलती है।
- (C) महाराणा प्रताप के छोटे भाई शक्ति सिंह की जानकारी मिलती है।
- (D) मुगल मेवाड़ संधि की जानकारी मिलती है।
- (E) महाराणा राजसिंह के समय (1662-1676 ई.) के अकाल राहत कार्यों की जानकारी मिलती है।
18. महाराणा जयसिंह (1680- 1698 ई.)-
- उदयपुर में जयसमंद झील का निर्माण करवाया।
- जयसमंद झील के पास नर्मदेश्वर मंदिर (शिव) का निर्माण करवाया।
- अपनी परमार रानी कोमला देवी के लिए जयसमंद झील के पास महल का निर्माण करवाया था जिसे रूठी का महल कहते हैं।
- मुगल बादशाह औरंगजेब के साथ संधि कर ली।
- जयसिंह राठौड़-सिसोदिया गठबंधन से अलग हो गया था। अर्थात् राठौड़-सिसोदिया गठबंधन तोड़ दिया।
- जजिया कर के बदले में मुगलों को भीलवाड़ा के पुर, मांडल तथा बदनौर परगने दिये।
19. महाराणा अमर सिंह- II (1698- 1710 ई.)-
- इसके शासन काल में मेवाड़ में अमर शाही पगड़ियां लोकप्रिय हुई।
- अमर शाही पगड़ी को अटपटी पगड़ी भी कहते हैं।
- इसके शासक काल से राजस्थान में पगड़ियों की शुरुआत मानी जाती है।
देबारी समझौता (1708 ई.)-
- मुगल बादशाह बहादुर शाह- I के खिलाफ तथा राजस्थान की तीन रियासतों के मध्य हुआ।
- समझौते में राजस्थान की तीन रियासते जैसे-
- 1. मेवाड़ रियासत (राजा- महाराणा अमरसिंह- II)
- 2. मारवाड़ रियासत (राजा- अजीत सिंह)
- 3. आमेर रियासत (राजा- सवाई जयसिंह)
- समझौते की शर्ते-
- 1. मारवाड़ के राजा अजीत सिंह तथा आमेर के राजा सवाई जयसिंह को उनके राज्य वापस दिलाने में सहायता की जायेगी।
- 2. मेवाड़ का राजा अमरसिंह- II ने अपनी राजकुमारी चन्द्र कंवर का विवाह आमेर के राजा सवाई जयसिंह के साथ किया गया तथा यह निर्धारित किया गया की चन्द्र कंवर का बेटा ही आमेर का अगला राजा होगा।
20. महाराणा संग्राम सिंह- II (1710- 1734 ई.)-
- उदयपुर में सहेलियों की बाड़ी का निर्माण करवाया।
- सीसारमा (उदयपुर) में वैद्यनाथ मंदिर का निर्माण करवाया।
- इसके शासन काल में मराठों ने मेवाड़ से चौथ वसूल किया।
वैद्यनाथ प्रशस्ति-
- सीसारमा (उदयपुर) के वैद्यनाथ मंदिर के बाहर से प्राप्त हुई।
- लेखक- रूप भट्ट
- जानकारी- बांदनवाड़ा युद्ध की
बांदनवाड़ा का युद्ध (बांदनवाड़ा, अजमेर- 1711 ई.)-
- महाराणा संग्राम सिंह-II (मेवाड़) (✅) Vs मुगल (❌)
- मुगलों की तरफ से मुगल सेनापति रणबाज खाँ आया।
- युद्ध का कारण- भीलवाड़ा के पुर, मांडल तथा बदनौर तीन परगने थे।
21. महाराणा जगतसिंह- II (1734- 1751 ई.)-
- उदयपुर में जगत निवास महल का निर्माण करवाया।
- दरबारी विद्वान- 1. नेकराम (पुस्तक- जगत विलास)
हुरडा सम्मेलन- (हुरड़ा, भीलवाड़ा, 17 जुलाई 1734)
- हुरडा सम्मेलन की शुरुआत महाराणा संग्राम सिंह-II के शासन काल में हुई थी परन्तु हुरडा सम्मेलन महाराणा जगतसिंह-II के शासन काल में सम्पन करवाया गया अर्थात् महाराणा संग्राम सिंह-II के शासन काल में हुरडा सम्मेलन का आयोजन करने के लिए राजस्थान के राजाओं को आमंत्रण भेजा गया परन्तु महाराणा संग्राम सिंह की मृत्यु हो जाने के कारण हुरडा सम्मेलन महाराणा जगतसिंह के शासन का में सम्पन हुआ।
- राजस्थान के राजपूत राजाओं का मराठों के खिलाफ किया गया सम्मेलन।
- सम्मेलन में राजस्थान के निम्नलिखित राजा शामिल हुए-
- 1. जगतसिंह-II (मेवाड़)- अध्यक्ष
- 2. सवाई जयसिंह (आमेर या जयपुर)
- 3. उभय सिंह (मारवाड़)
- 4. बख्त सिंह (नागौर)
- 5. जोराव सिंह (बीकानेर)
- 6. दलेल सिंह (बूँदी)
- 7. राजसिंह (किशनगढ़)
- 8. दुर्जनसाल (कोटा)
- 9. गोपालपाल (करौली)
- सम्मेलन का आयोजन आमेर (जयपुर) के राजा सवाई जयसिंह की सिफारिश पर किया गया।
- सम्मेलन में लिये गये निर्णय-
- 1. राजस्थान के सभी राजा मराठों के खिलाफ एक दुसरे की सहायता करेंगे।
- 2. वर्षा ऋतु समाप्त होने के बाद रामपुरा (मालवा) में मराठों के खिलाफ युद्ध किया जायेगा।
- सम्मेलन के प्रभाव या परिणाम या महत्व-
- 1. राजाओं के आपसी मतभेदों के कारण हुरडा सम्मेलन असफल हो गया था।
- 2. खानवा युद्ध के बाद पहली बार राजस्थान के राजपूत राजाओं ने किसी दुसरी शक्ति के खिलाफ एकता दिखायी थी।
22. महाराणा भीमसिंह (1778- 1828 ई.)-
- 13 जनवरी 1818 ई. में अंग्रेजों के साथ संधि कर ली।
गिंगोली या परबतसर का युद्ध (परबतसर, नागौर- 13 मार्च 1807 ई.)-
- जगतसिंह-II (जयपुर) (✅) Vs मानसिंह (मारवाड़) (❌)
- अमीर खाँ पिंडारी तथा अजीत सिंह चूंडावत की सलाह पर कृष्णा कुमारी को जहर दे दिया गया।
- युद्ध का कारण- मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह की पुत्री कृष्णाकुमारी की सगाई पहले मारवाड़ के राजा भीमसिंह के साथ कर दी थी लेकिन विवाह से पूर्व मारवाड़ के राजा भीमसिंह की मृत्यु हो गई थी तथा बाद में मेवाड़ के महाराणा भीमसिंह ने अपनी बेटी कृष्णाकुमारी की सगाई जयपुर के राजा जगतसिंह-II के साथ कर दी थी। लेकिन मारवाड़ का राजा मानसिंह कृष्णाकुमारी का विवाह मारवाड़ में ही करवाना चाहता था।