सांभर या अजमेर का चौहान वंश

सांभर-

  • सांभर में चौहान वंश का शासन था।


सांभर या अजमेर के चौहान वंश के प्रमुख राजा-

  • 1. वासुदेव
  • 2. गूवक-I
  • 3. चन्दनराज
  • 4. वाक्पतिराज
  • 5. विग्रहराज-II
  • 6. गोविन्द-III
  • 7. अजयराज
  • 8. अर्णोराज (आनाजी)
  • 9. विग्रहराज-IV
  • 10. अपरगांग्य
  • 11. पृथ्वीराज-II
  • 12. सोमेश्वर
  • 13. पृथ्वीराज-III (पृथ्वीराज चौहान)
  • 14. गोविंदराज
  • 15. हरिराज


1. वासुदेव-

  • सांभर में चौहान वंश का संस्थापक- वासुदेव
  • राजशेखर की पुस्तक प्रबंधकोष के अनुसार वासुदेव ने 551 ई. में चौहान राज्य की स्थापना की।
  • बिजौलिया अभिलेख के अनुसार वासुदेव ने सांभर झील (जयपुर) का निर्माण करवाया।


2. गूवक-I

  • चौहान पहले प्रतिहारों के सामन्त थे।
  • प्रतिहार राजा नागभट्ट-द्वितीय ने गूवक-I को वीर की उपाधी दी।
  • कालांतर में गूवक-I ने प्रतिहारों की अधिनता स्वीकार करने से मना कर दिया।
  • पहला स्वतंत्र चौहान राजा- गूवक-I
  • प्रतिहारों की राजधानी- भीनमाल (जालौर)


3. चन्दनराज-

  • रानी- आत्मप्रभा (अन्य नाम- रूद्राणी)
  • आत्मप्रभा पुष्कर झील (अजमेर) में 1000 दीपक जलाकर शिव भगवान की पूजा करती थी।
  • आत्मप्रभा योग क्रिया में निपुण थी।


4. वाक्पतिराज-

  • 108 युद्धों का विजेता।

  • इसके बेटे लक्ष्मणराज ने नाडोल में चौहान राज्य की स्थापना की।


5. विग्रहराज-II

  • गुजरात के चालुक्य राजा मुलराज-I को हराया।
  • भरूच (गुजरात) में अपनी कुल देवी आशापुरा माता का मंदिर बनवाया।
  • चौहान वंश की कुल देवी- आशापुरा माता


6. गोविन्द-III

  • मुस्लिम इतिहासकार फरिश्ता के अनुसार गोविन्द-III ने गजनी के राजा को मारवाड़ पार नहीं करने दिया।

  • उपाधि- वैरीघट्ट (पुस्तक पृथ्वीराज विजय के अनुसार)


7. अजयराज-

  • 1113 ई. में अजमेर की स्थापना की तथा यहाँ पर किले का निर्माण करवाया।
  • अजमेर का मूल नाम- अजयमेरू
  • गर्जन मातंगो (गजनी की तरफ से किया गया आक्रमण) को हराया।
  • पार्श्वनाथ मंदिर में स्वर्ण कलश (सोने का कलश) भेंट किया।
  • दिगम्बर तथा श्वेताम्बर के बीच शास्त्रार्थ की अध्यक्षता की।
  • अपनी रानी सोमलदेवी (सोमलेखा) के नाम से चाँदी व ताँबे के सिक्के चलाये।
  • अपने बेटे अर्णोराज को राजा बनाया तथा स्वयं सन्नयासी बन गया।
  • अपने अंतिम समय मे सन्नयासी बनने वाला एकमात्र चौहान राजा- अजयराज


8. अर्णोराज (आनाजी)-

  • पिता- अजयराज

  • तुर्को को हराया तथा युद्ध स्थल पर आनासागर झील (अजमेर) का निर्माण करवाया।
  • मालवा (मध्य प्रेदश) के राजा नरवर्मन को हराया।
  • गुजरात के राजा जयसिंह सिद्धराज को हराया।
  • जयसंहि सिद्धराज ने अपनी पुत्री राजकुमारी कांचन देवी (गुजरात) का विवाह अर्णोराज के साथ किया था।
  • गुजरात के कुमारपाल चालुक्य ने अर्णोराज को हराया।
  • पुष्कर (अजमेर) में वराह मंदिर (विष्णु) का निर्माण करवाया।
  • खरतरगच्छ समुदाय (जैन धर्म) को भूमी दान दिया।
  • दरबारी जैन विद्वान-
  • (I) देव बोध
  • (II) धर्मघोष
  • अर्णोराज की हत्या उसके बेटे जग्गदेव की।


9. विग्रहराज-IV (1152-1163)-

  • इतिहासकार दशरथ शर्मा के अनुसार विग्रहराज-IV का शासन काल अजमेर के चौहानों का स्वर्ण काल था।
  • गजनी के राजा खुसरोशाह को हराया।
  • बिजोलिया अभिलेख के अनुसार इसने दिल्ली (ढिल्लिका) पर विजय प्राप्त की तथा अब दिल्ली के तोमर चौहनों के सामन्त बन गये थे।
  • दिल्ली का प्राचीन नाम- ढिल्लिका
  • दिल्ली शिवालिक स्तम्भ लेख लगवाया। (अशोक के दिल्ली टोपरा लेख के ठीक नीचे)

  • निर्माण-

  • (I) बीसलपुर नगर की स्थापना
  • (II) बीसलपुर नगर में तालाब तथा शिव मंदिर का निर्माण
  • (III) सरस्वती कंठाभरण संस्कृत पाठशाला (अजमेर)
  • कालांतर में कुतुबद्दीन ऐबक ने सरस्वती कंठाभरण नामक संस्कृत पाठशाला को तोड़ दिया तथा इसके स्थान पर एक मस्जिद का निर्माण करवाया था तथा इसी मस्जिद को अढ़ाई दिन का झोंपड़ा कहा जाता है।
  • इसी मस्जिद के पास पीर पंजाबशाह का 2½ दिन (ढाई दिन) का उर्स (मेला) भरता है।
  • धर्मघोष सूरि के कहने पर इसने हर महीने की एकादशी के दिन पशु हत्या पर रोक लगा दी थी।
  • पुस्तक-
  • (I) हरकेली (भारवि की पुस्तक 'किरातार्जुनीयम्' पर आधारीत)
  • दरबारी विद्वान-
  • (I) सोमदेव (पुस्तक- ललित विग्रहराज, विग्रहराज-IV तथा देसल देवी की प्रेम कहानी का वर्णन)

  • ललित विग्रहराज पुस्तक के अनुसार विग्रहराज-IV ने गजनी के राजा खुसरोशाह को हराया।
  • उपाधियां-
  • (I) बीसलदेव
  • (II) कवि बन्धु (पृथ्वीराज विजय पुस्तक के अनुसार)
  • बीसलदेव रासौ (पुस्तक)- (लेखक- नरपति नाल्ह, भाषा- गौडवाडी)
  • गौडवाडी बोली मारवाड़ी बोली की उपबोली है।
  • गौडवाडी बोली बाली (पाली) से आहोर (जालौर) की बीच बोली जाती है।


10. अपरगांग्य-

  • पिता- विग्रहराज-IV
  • जग्गदेव का बेटा पृथ्वीराज-II इसको राजा के पद से हटाकर स्वयं राजा बन गया।


11. पृथ्वीराज-II

  • 1167 ई. के हाँसी (हरियाण) अभिलेख के अनुसार  इसने हाँसी में एक किले का निर्माण करवाया तथा वहाँ पर अपने मामा गुहिल किल्हण को नियुक्त कर दिया।
  • 1168 ई. के रूठी रानी मंदिर (शिव मंदिर) के धोड़ अभिलेख (भीलवाड़ा) के अनुसार इसने अपना राज्य बाहुबल से प्राप्त किया था।
  • रूठी रानी का मंदिर (शिव मंदिर)- भीलवाड़ा
  • रूठी रानी का वास्तविक नाम- सुहाव देवी

  • धोड़ अभिलेख में इसकी एक रानी सुहाव देवी का नाम मिलता है।

  • निर्माण-
  • (I) मेनाल (भीलवाड़ा) में सुहेश्वर मंदिर (शिव) का निर्माण करवाया।


12. सोमेश्वर-

  • पिता- अर्णोराज
  • रानी- कर्पूरी देवी (चेदि,मध्य प्रदेश के राजा अचलराज कलचूरी की पुत्री)
  • बचपन गुजरात में बीता।
  • कोंकण के राजा मल्लिकार्जुन (गुजरात के राजा कुमारपाल चालुक्य का शत्रु) को हराया।
  • निर्माण-
  • (I) अजमेर में अपनी तथा अपने पिता अर्णोराज की मूर्तियां लगवायी।
  • (II) वैद्यनाथ मंदिर- अजमेर (मंदिर में भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश की मूर्तियां लगी हुई है।)
  • इसके शासन काल में बिजौलिया अभिलेख (1170 ई.) लगवाया गया था।
  • बिजौलिया अभिलेख के अनुसार इसने पार्श्वनाथ मंदिर (जैन मंदिर) को रेवणा नामक गाँव दान मे दिया।
  • उपाधि-
  • (I) प्रताप लंकेश्वर (बिजौलिया अभिलेख में)


बिजौलिया अभिलेख (1170 ई.)- भीलवाड़ा

  • स्थापना- दिगम्बर जैन लोलाक के द्वारा पार्श्वनाथ मंदिर में लगवाया।
  • रचना- गुणभद्र
  • लेखक- केशव
  • उत्कीर्ण- गोविंद के द्वारा
  • प्रशासनिक विभाजन की जानकारी मिलती है जैसे- (देश > पत्तन > पुर > पल्लि > ग्राम)


बिजौलिया अभिलेख के अनुसार-

  • (I) चौहान वत्स गौत्रीय ब्राह्मण।
  • (II) वासुदेव ने सांभर झील का निर्माण करवाया।
  • (III) विग्रहराज-IV ने दिल्ली पर विजय प्राप्त की।
  • (IV) सोमेश्वर ने पार्श्वनाथ मंदिर को रेवणा नामक गाँव दान में दिया।
  • (V) शैव तथा जैन तीर्थों की जानकारी मिलती है।-
  • विजयावल्ली (बिजौलिया)
  • उत्तमाद्रि (ऊपरमाल)
  • मंडलकर (मांडलगढ़)
  • नागहृद (नागदा)
  • शाकम्भरी (सांभर)
  • अहिच्छत्रपुर (नागौर)
  • नड्डुल (नाडौल)
  • जाबालिपुर (जालौर)
  • श्रीमाल (भीनमाल)


13. पृथ्वीराज तृतीय (पृथ्वीराज चौहान) (1177-1192)-

  • पिता- सोमेश्वर
  • माता- कर्पूरी देवी
  • 11 वर्ष की अल्प आयु में ही राजा बना।
  • संरक्षिका- माता कर्पूरी देवी
  • अपने चचेरे भाईयों (नागार्जुन तथा अपरगांग्य) के विद्रोह को दबाया।
  • नागार्जुन ने गुरुग्राम (हरियाणा) को अपना मुख्य केन्द्र बनाया।
  • 1182 ई. में मथुरा, अलवर तथा भरतपुर क्षेत्रों में पृथ्वीराज चौहान ने भंडानक जनजाति के विद्रोह को दबाया इस बात की जानकारी जिनपति सूरि (जैन) की पुस्तको से मिलती है।
  • उपाधियां-
  • (I) राय पिथौरा
  • (II) दलपुंगल
  • सांस्कृतिक उपलब्धियां-
  • (I) कला एवं संस्कृति विभाग की स्थापना की तथा इस विभाग का मंत्री पद्मनाभ को बनाया था।
  • (II) दिल्ली के समीप पिथौरागढ़ किले का निर्माण करवाया।
  • दरबारी विद्वान-
  • (I) चन्दबरदाई (पुस्तक- पृथ्वीराज रासौ)
  • (II) जयानक (पुस्तक- पृथ्वीराज विजय)
  • (III) वागीश्वर जनार्दन
  • (IV) विद्यापति गौड
  • (V) विश्वरूप
  • (VI) आशाधर
  • प्रमुख मंत्री-
  • (I) कदम्बवास
  • (II) भुवनमल्ल
  • (III) स्कन्द
  • (IV) वामन
  • (V) सोढ


महोबा का युद्ध-

  • पृथ्वीराज चौहान (✅) Vs परमार्दिदेव चन्देल (महोबा का राजा) (❌)
  • स्थान- महोबा (मध्य प्रदेश)
  • युद्ध वर्ष- 1182 ई.
  • पृथ्वीराज चौहान ने पंजवनराय को महोबा का प्रशासक बना दिया।
  • युद्ध में परमार्दिदेव चन्देल के सैनापति-

  • (I) आल्हा
  • (II) उदल
  • युद्ध का कारण-
  • (I) महोबा के राजा परमार्दिदेव चन्देल ने पृथ्वीराज चौहान के घायल सैनिकों को मरवा दिया था।


नागौर का युद्ध-

  • पृथ्वीराज चौहान Vs भीम-II चालुक्य (गुजरात का राजा)

  • स्थान- नागौर (राजस्थान)
  • युद्ध वर्ष- 1184 ई.
  • जगदेव प्रतिहार ने दोनों के मध्य संधि करवा दी थी।

  • युद्ध के कारण-
  • (I) दोनों अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहते थे।
  • (II) चौहानों तथा चालुक्यों बीच लम्बे समय से दुश्मनी चली आ रही थी।
  • (III) दोनों आबू (सिरोही) की परमार वंश की राजकुमारी इच्छिनी देवी से विवाह करना चाहते थे लेकिन पृथ्वीराज चौहान ने राजकुमारी इच्छिनी देवी से विवाह कर लिया था।


चौहान- गहडवाल विवाद-

  • पृथ्वीराज चौहान तथा कन्नौज (उत्तर प्रदेश) के राजा जयचन्द के मध्य विवाद था जिसे चौहान गहडवाल विवाद नाम दिया।
  • विवाद के कारण-
  • (I) दिल्ली का उतराधिकारी बनने हेतु पृथ्वीराज चौहान तथा जयचन्द के मध्य तनावपूर्ण संबंध थे।
  • (II) जयचन्द पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ परमार्दिदेव चन्देल की सहायता कर रहा था।
  • (III) पृथ्वीराज चौहान ने जयचन्द की बेटी संयोगिता का अपहरण कर उससे विवाह कर लिया था।
  • दशरथ शर्मा ने पृथ्वीराज चौहान तथा संयोगिता की प्रेम कहानी को ऐतिहासिक तथ्य के रूप में स्वीकार किया है।
  • दशरथ शर्मा की पुस्तक "The early Chauhan dynasty" में पृथ्वीराज चौहान तथा संयोगिता की प्रेम कहानी का वर्णन मिलता है।


तराईन का प्रथम युद्ध-

  • पृथ्वीराज चौहान (✅) Vs मोहम्मद गौरी (गजनी का शासक) (❌)
  • स्थान- तराईन (हरियाणा)
  • युद्ध वर्ष- 1991
  • दिल्ली के गोविंदराज तोमर ने मोहम्मद गौरी को घायल कर दिया था।
  • गोविंदराज तोमर पृथ्वीराज चौहान का सैनापति था।
  • युद्ध के कारण-
  • (I) मोहम्मद गौरी अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था।
  • (II) गजनी के राजाओं तथा चौहानों के बीच लम्बे समय से दुश्मनी चली आ रही थी।
  • (III) तात्कालिक कारण- मोहम्मद गौरी ने तबर हिन्द (बठिंडा) पर अधिकार कर लिया था।
  • तबर हिन्द को वर्तमान में बठिंडा या भटिंडा (पंजाब) कहा जाता है।


तराईन का द्वितीय युद्ध-

  • पृथ्वीराज चौहान (❌) Vs मोहम्मद गौरी (गजनी का शासक) (✅)
  • स्थान- तराईन (हरियाणा)
  • युद्ध वर्ष- 1192 ई.
  • पृथ्वीराज चौहान को सिरसा (हरियाणा) के पास सरस्वती नामक स्थान से गिरफ्तार किया गया तथा पृथ्वीराज चौहान की हत्या कर दी गई।
  • ➠इतिहासकार हसन निजामी के अनुसार पृथ्वीराज चौहान ने कुछ दिनों तक मोहम्मद गौरी के अधिन शासन किया था (इस बात का वर्णन हसन निजामी की पुस्तक ताज-उल-मासिर में मिलती है।)
  • युद्ध में पृथ्वीराज चौहान के हार के कारण-
  • (I) पृथ्वीराज चौहान के अपने पड़ोसी राज्यों के साथ मतभेद थे अतः किसी भी राजा ने मोहम्मद गौरी के खिलाफ पृथ्वीराज चौहान की सहायता नहीं की।
  • (II) पृथ्वीराज चौहान की सेना मोहम्मद गौरी की सेना की तुलना में कम थी क्योंकि पृथ्वीराज चौहान के सेनापति अन्य सीमाओं पर व्यस्थ थे।
  • (III) तराईन के पहले युद्ध के बाद पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गौरी को युद्ध की तैयारी का प्रयाप्त समय दे दिया था।
  • (IV) मोहम्मद गौरी एक अच्छा सेनापति था तथा मोहम्मद गौरी ने अपनी कूटनीति से पृथ्वीराज चौहान को हरा दिया था।
  • (V) तुर्को ने युद्ध में घोड़ों का प्रयोग किया था जबकि राजपूतों ने हाथियों का प्रयोग किया था।
  • (VI) तुर्को ने युद्ध में राजपूतों की अपेक्षा हल्के हथियारों का प्रयोग किया था।
  • युद्ध के राजनीतिक प्रभाव (परिणाम या महत्व)-
  • (I) पृथ्वीराज चौहान की हार के बाद मोहम्मद गौरी के उत्तराधिकारियों के लिए भारत में राज करना आसान हो गया था।
  • (II) राजपूतों की उभरती हुई राजनीतिक महत्वाकांक्षा समाप्त हो गई थी तथा पृथ्वीराज चौहान के बाद कोई भी राजपूत या हिन्दू राजा दुबारा दिल्ली पर अधिकार नहीं कर पाया था।
  • (III) भारत में विदेशी शासन का सिलसिला प्रारम्भ हुआ जो की 1947 तक चलता रहा था।
  • युद्ध के सांस्कृतिक प्रभाव (परिणाम या महत्व)-
  • (I) तुर्क शासन की स्थापना के कारण भारतीय कला एवं संस्कृति पर सकारात्मक तथा नकारात्मक प्रभाव दिखायी दिये। जैसे-
  • (A) सकारात्मक प्रभाव-
  • (अ) भारत में इंडो इस्लामिक नामक एक साझी संस्कृति का उदय हुआ जिसके प्रभाव स्थापत्य कला, साहित्य कला, संगीत कला तथा चित्रकला पर देखे गये।
  • (ब) भारत में सूफी तथा भक्ति आंदोलन प्रारम्भ हो गये थे।
  • (B) नकारात्मक प्रभाव-
  • (अ) तर्को ने हिन्दू मंदिरों तथा बौद्ध मठों को तोड़ा जिससे भारतीय संस्कृति का नुकसान हुआ।
  • (ब) 1200 ई. के बाद बौद्ध संस्कृति भारत से लगभग समाप्त हो गयी थी।
  • (स) तुर्क आक्रमणकारियों ने विद्या केंद्रों को नष्ट किया जिससे शिक्षा का पतन हुआ।


पृथ्वीराज चौहान का मूल्यांकन-

  • पृथ्वीराज चौहान पर अपरिपक्व सेनापति तथा अदूरदर्शी राजा होने का अरोप लगाया जाता है। लेकिन यह आरोप सही नहीं है क्योंकि तराईन के दुसरे युद्ध से पहले पृथ्वीराज चौहान को किसी भी युद्ध में हार का सामना नहीं करना पड़ा था अतः पृथ्वीराज चौहान को अपरिपक्व सेनापति नहीं कहा जा सकता है।
  • दुश्मन (मोहम्मद गौरी) की भागती हुई सेना पर पृथ्वीराज चौहान के द्वारा आक्रमण नहीं करना तथा माफी मांगने पर दुश्मन (मोहम्मद गौरी) को छोड़ देना उस समय की भारतीय संस्कृति के आदर्श थे तथा पृथ्वीराज चौहान भी इन्ही आदर्शों का पालन कर रहा था।
  • हालाकी पृथ्वीराज चौहान की हार ने भारत की गुलामी का मार्ग प्रशस्त कर दिया था लेकिन फिर भी मध्यकालीन भारत के इतिहास में पृथ्वीराज चौहान के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।


13. गोविंदराज-

  • तुर्को की अधिनता स्वीकार कर अजमेर का राजा बना।
  • चाचा हरिराज गोविंदराज को राजा के पद से हटाकर स्वयं अजमेर का राजा बन गया।
  • राजा के पद से हटाने के बाद गोविंदराज रणथम्भौर चला गया।


14. हरिराज-

  • अपने सेनापति चतरराज को दिल्ली पर आक्रमण करने के लिए भेजा लेकिन चतरराज को हार का सामना करना पड़ा।
  • कुतुबुद्दीन ऐबक (दिल्ली) ने हरिराज (अजमेर) पर आक्रमण किया तथा कुतुबुद्दीन ऐबक ने हरिराज को हरा दिया।
  • युद्ध में हारने के बाद हरिराज ने आत्महत्या कर ली थी। अतः अब अजमेर पर तुर्कों का राज हो गया था।

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