नैनो तकनीकी से संबंधित चुनौतियां (Challenges/ Concerns Related To Nano Technology)-
- 1. पदार्थ के परमाणु स्तर या आणविक स्तर पर पहुँचना बहुत जटिल है।
- 2. पदार्थ के परमाणु स्तर पर जाकर पदार्थ की संरचना में बदलाव के लिए अत्यधिक बंधन ऊर्जा की आवश्यकता होती है।
- 3. ऐसे नैनो असेंबलर्स (Nano Assemblers) का निर्माण करना जो नैनो स्तर पर परमाणुओं का सटीकता से पृथक्करण व समेकन कर सके।
- 4. नैनो तकनीकी को विकसित करने के लिए प्रशिक्षित और कुशल मानव संसाधन की आवश्यकता।
- 5. नैनो तकनीकी को विकसित करने के लिए लागत अत्यधिक उच्च होती है।
- 6. ग्रे गू (Gray Goo) की समस्या-
- ग्रे गू की समस्या अर्थात् नैनो बॉटस के द्वारा स्वप्रतिकरण की क्षमता विकसित कर लेना अत्यधिक भयावह होगा। (स्वप्रतिकरण- अपने जैसा ही और बना लेना)
- 7. नैनो लिटरबग (Nano Litterbugs) या नैनो अवशेष-
- वे नैनो कण जिनका प्राकृतिक अपघटन संभव नहीं उन्हें नैनो लिटरबग या नैनो अवशेष कहते हैं।
- 8. अमेरिका, जर्मनी, जापान आदि देश नैनो तकनीकी के क्षेत्र में बहुत आगे है। अतः अपार संभावनाओं वाली इस तकनीक पर कुछ देशों का प्रभुत्व हो जाए। जैसे- पेटेंट या क्वांटम कम्प्यूटर
- 9. नैनो तकनीकी से अनेक छिपे खतरे भी संभव है क्योंकि नैनो तकनीक के अनुप्रयोगों के दूरगामी प्रभाव पूरी तरह से पता नहीं है।
- 10. आतंकवादी तथा आपराधिक गतिविधियों में नैनो तकनीकी का दुरुपयोग किया जा सकता है।
जेनोबोट्स (Xenobots)-
- अमेरिका के टफ्ट्स और वरमोंट विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं के द्वारा अफ्रीकी मेंढ़क की स्टेम कोशिकाओं से रोबोट विकसित किया गया है। जिसे जेनोबोट्स नाम दिया गया है।
- जेनोबोट्स विश्व का पहला जीवित रोबोट है जो स्वप्रतिकरण कर सकता है। अर्थात् जेनोबोट्स विश्व का पहला ऐसा जीवित रोबोट है जो अपने ही जैसे अनेक रोबोट स्वयं बना सकता है।
- जेनोबोट्स रोबोट क्षति के बाद स्वयं को ठीक करने में सक्षम है।
- जेनोबोट्स रोबोट एक साथ समूहों में काम कर सकते हैं।
- जेनोबोट्स रोबोट के रिप्रोड्यूस (पुनरुत्पादन) का तरीका जानवरों और पौधों से अलग है।
- जेनोबोट्स रोबोट का आकार 1 मिलीमीटर से भी कम है।
- जेनोबोट्स रोबोट को पहली बार वर्ष 2020 में बनाया गया था।