व्यञ्जन सन्धि (व्यंजन सन्धि)
व्यञ्जन सन्धि (व्यंजन सन्धि) की परिभाषा-
- व्यञ्जन (व्यंजन) के बाद स्वर या व्यञ्जन (व्यंजन) आने पर उनके मेल से जो विकार (परिवर्तन) उत्पन्न होता है उसे व्यञ्जन सन्धि (व्यंजन सन्धि) कहते है। जैसे-
- वाक् + ईश = वागीश
- जगत् + नाथ = जगन्नाथ
व्यञ्जन सन्धि के नियम-
- व्यञ्जन सन्धि नियम-1
- व्यञ्जन सन्धि नियम-2
- व्यञ्जन सन्धि नियम-3
- व्यञ्जन सन्धि नियम-4
- व्यञ्जन सन्धि नियम-5
- व्यञ्जन सन्धि नियम-6
- व्यञ्जन सन्धि नियम-7
- व्यञ्जन सन्धि नियम-8
- व्यञ्जन सन्धि नियम-9
- व्यञ्जन सन्धि नियम-10
व्यञ्जन सन्धि नियम-1
- यदि वर्ग के प्रथम वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) के बाद किसी भी वर्ग का तीसरा वर्ण (ग्, ज्, ड्, द्, ब्), किसी भी वर्ग को चौथा वर्ण (घ्, झ्, ढ्, ध्, भ्), अन्तःस्थ वर्ण (य्, र्, ल्, व्) या कोई स्वर आये तो प्रथम वर्ण अपने ही वर्ग के तीसरे वर्ण (ग्, ज्, ड्, द्, ब्) में परिवर्तित हो जाता है।
व्यञ्जन सन्धि नियम-1 के उदाहरण-
- दिक् + गज = दिग्गज (दि + क् + गज = दि + ग् + गज = दिग्गज)
- जगत् + ईश = जगदीश
- सत् + आचार = सदाचार
- षट् + गुण = षड्गुण
- ऋक् + वेद = ऋग्वेद
- अच् + अन्त = अजन्त
- भगवत् + गीता = भगवद्गीता
- वाक् + ईश = वागीश
- वाक् + ईशा = वागीशा
- दिक् + अम्बर = दिगम्बर
- सुप् + अन्त = सुबन्त
- अप् + ज = अब्ज
- सत् + उपदेश = सदुपदेश
- षट् + राग = षड्राग
- षट् + रस = षड्रस
- तत् + उपरान्त = तदुपरान्त
- जगत् + अम्बा = जगदम्बा
- उत् + घाटन = उद्घाटन
- वाक् + जड़ता = वाग्जड़ता
- वाक् + देवी = वाग्देवी
- उत् + योग = उद्योग
- दिक् + विजय = दिग्विजय
- पट् + यंत्र = षड्यंत्र
- सम्यक् + वाणी = सम्यग्वाणी
- वृहत् + आकाश = वृहदाकाश
- जयत् + रथ = जयद्रथ
- दिक् + अन्त = दिगन्त
- वाक् + ईश्वरी = वागीश्वरी
- तत् + रूप = तद्रूप
- जगत् + आनन्द = जगदानन्द
- प्राक् + ऐतिहासिक = प्रागैतिहासिक
- जगत् + गुरु = जगद्गुरु
- वाक् + जाल = वाग्जाल
- षट् + अक्षर = षडक्षर
- षट् + भुजा = षड्भुजा
- षट् + आनन = षडानन
- सत् + आत्मा = सदात्मा
- सत् + आनन्द = सदानन्द
- सत् + भाव = सद्भाव
- सत् + वाणी = सद्वाणी
- सत् + व्यवहार = सद्व्यवहार (सद् + व्यवहार)
- वाक् + दान = वाग्दान
- उत् + दण्ड = उद्दण्ड
- जगत् + आचार्य = जगदाचार्य
- सत् + गति = सद्गति
- अच् + आदि = अजादि
व्यञ्जन सन्धि नियम-2
- यदि वर्ग के प्रथम वर्ण (क्, च्, ट्, त्, प्) के बाद 'न्', 'म्' आये तो प्रथम वर्ण अपने ही वर्ग के पाँचवें वर्ण में बदल जाता है।
व्यञ्जन सन्धि नियम-2 उदाहरण-
- वाक् + मय = वाङ्मय (वाङ् + मय)
- षट् + मुख = षण्मुख
- उत् + नति = उन्नति
- षट् + नाम = षण्नाम (षण्णाम संस्कृत में दोनों ही सही)
- षट् + नियमावली = षण्नियमावली
- वाक् + नेत्र = वाङ्नेत्र
- दिक् + मण्डल = दिङ्मण्डल (दिङ + मण्डल)
- जगत् + माता = जगन्माता
- चित् + मय = चिन्मय
- उत् + नयन = उन्नयन
- उत् + मूलन = उन्मूलन
- जगत् + मिथ्या = जगन्मिथ्या
- षट् + मास = षण्मास
- सत् + निधि = सन्निधि
- सत् + नारी = सन्नारी
- षट् + मातुर = षण्मातुर
- षट् + मूर्ति = षण्मूर्ति
- वृहत + माला = वृहन्माला
- दिक् + मय = दिङ्मय (दिङ् + मय)
- उत् + माद = उन्माद
- उत् + नत = उन्नत
- वणिक् + नीति = वणिङ्नीति
व्यञ्जन सन्धि नियम-3
- यदि 'म्' के बाद स्पर्श वर्ण आये तो 'म्' को स्पर्श वर्ण के अंतिम वर्ण में परिवर्तित कर देते है।
- यदि 'म्' के बाद अन्तःस्थ वर्ण, ऊष्म वर्ण या संयुक्त वर्ण आये तो 'म्' को अनुस्वार में परिवर्तित कर देते हैं।
- यदि 'म्' के बाद कोई स्वर आये तो दोनों को जोड़ देते है। ''
व्यञ्जन सन्धि नियम-3 उदाहरण
- सम् + धि = सन्धि
- किम् + नर = किन्नर
- सम् + रक्षण = संरक्षण
- सम् + जीवनी = सञ्जीवनी
- सम् + वर्धन = संवर्धन
- सम् + वेग = संवेग
- सम् + स्थान = संस्थान
- सम् + जय = सञ्जय
- सम् + तोष = सन्तोष
- सम् + ताप = सन्ताप
- मृत्युम् + जय = मृत्युञ्जय
- अलम् + कार = अलङ्कार (अलङ् + कार)
- सम् + आचार = समाचार
- सम् + भावना = सम्भावना
- भयम् + कर = भयङ्कर (भयङ् + कर)
- सम् + निवेश = सन्निवेश
- सम् + चालक = सञ्चालक
- शम् + कर = शङ्कर (शङ् + कर)
- सम् + देह = सन्देह
- अलम् + करण = अलङ्करण (अलङ् + करण)
- सम् + वेदना = संवेदना
- सम् + उच्चय = समुच्चय
- सम् + गम = सङ्गम (सङ् + गम)
- सम् + कल्प = सङ्कल्प (सङ् + कल्प)
- सम् + सार = संसार
- सम् + वाद = संवाद
- सम् + हार = संहार
- सम् + ज्ञा = संज्ञा
- सम् + यम = संयम
- सम् + गति = सङ्गति (सङ् + गति)
- सम् + लग्न = संलग्न
- सम् + युक्त = संयुक्त
व्यञ्जन सन्धि नियम-4
- यदि 'स्' या 'त' वर्ग (त्, थ्, द्, ध्, न्) के बाद 'श्' या 'च' वर्ग (च्, छ्, ज्, झ्, ञ्) आये तो 'स्' के स्थान पर 'श्' तथा 'त' वर्ग के स्थान पर क्रमशः 'च' वर्ग हो जाता है। जैसे-
क्रमशः | क्रमशः |
---|---|
स् | श् |
त् | च् |
थ् | छ् |
द् | ज् |
ध् | झ् |
न् | ञ् |
व्यञ्जन सन्धि नियम-4 उदाहरण
- निस् + चिन्त = निश्चिन्त
- उत् + चारण = उच्चारण
- दुस् + शासन = दुश्शासन
- सत् + चरित्र = सच्चरित्र
- उत् + छादन = उच्छादन
- विद्युत् + छटा = विद्युच्छटा
- उत् + छिन्न = उच्छिन्न
- सत् + जन = सद् + जन = सज्जन (यह शब्द पहले प्रथम नियम से बाद में चौथे नियम से)
- उत् + ज्वल = उद् + ज्वल = उज्ज्वल (नियम-1 , नियम-4) (एकमात्र शब्द जिसमें आधे ज्ज् आते है।)
- सत् + चित् + आनन्द = सच्चित् + आनन्द = सच्चिदानन्द (नियम-4, नियम-1)
- यावत् + जीवन = यावद् + जीवन = यावज्जीवन (नियम-1, नियम-4)
व्यञ्जन सन्धि नियम-5
- यदि 'त्' के बाद 'ह्' वर्ण आये तो 'त्' के स्थान पर 'द्' तथा 'ह्' के स्थान पर 'ध्' हो जाता है।
व्यञ्जन सन्धि नियम-5 उदाहरण
- उत् + हार = उद्धार
- उत् + हर्ता = उद्धर्ता
- उत् + हति = उद्धति
- उत् + हरण = उद्धरण
- उत् + हव = उद्धव
- उत् + हृत = उद्धृत
- पत् + हार = पद्धार
- पत् + हति = पद्धति
- तत् + हित = तद्धित
व्यञ्जन सन्धि नियम- 6
- यदि 'त' के बाद 'श्' वर्ण आये तो 'त' के स्थान पर 'च्' तथा 'श्' के स्थान पर 'छ्' हो जाता है।
व्यञ्जन सन्धि नियम- 6 उदाहरण
- उत् + शासन = उच्छासन
- उत् + श्वसन = उच्छ्वसन
- उत् + शिष्ट = उच्छिष्ट
- उत् + शेष = उच्छेष
- उत् + श्वास = उच्छ्वास
- उत् + शृंखला = उच्छृंखला
- उत् + शोषण = उच्छोषण
- तत् + शिव = तच्छिव
- सत् + शास्त्र = सच्छास्त्र
- शरत् + शशि = शरच्छशि
- जगत् + शान्ति = जगच्छान्ति
- श्रीमत् + शरत् + चन्द्र = श्रीमच्छरच्चन्द्र (पहले नियम-6, बाद में नियम-4)
व्यञ्जन सन्धि नियम- 7
- यदि 'त्' के बाद 'ल्' वर्ण आये तो 'त' के स्थान पर 'ल्' हो जाता है।
व्यञ्जन सन्धि नियम- 7 उदाहरण
- उत् + लंघन = उल्लंघन
- उत् + लेख = उल्लेख
- उत् + लोढ़ = उल्लोढ़
- उत् + लास = उल्लास
- उत् + लेखन = उल्लेखन
- उत् + लिखित = उल्लिखित
- पत् + लव = पल्लव
- तड़ित + लेखा = तड़िल्लेखा
- तत् + लीन = तल्लीन
- जगत् + लीन = जगल्लीन
व्यञ्जन सन्धि नियम- 8
- यदि किसी स्वर के बाद 'छ्' वर्ण आये तो दोनों के मध्य 'च्' का आगम होता है। अर्थात् '+' के स्थान पर 'च्' होगा।
व्यञ्जन सन्धि नियम- 8 उदाहरण
- वि + छेद = विच्छेद
- प्रति + छेद = प्रतिच्छेद
- प्रति + छवि = प्रचिच्छवि
- अनु + छेद = अनुच्छेद
- आ + छादन = आच्छादन
- तरु + छाया = तरुच्छाया
- शिव + छाया = शिवच्छाया
- मुख + छवि = मुखच्छवि
- स्व + छन्द = स्वच्छन्द
- हरि + छवि = हरिच्छवि
- मातृ + छाया = मातृच्छाया
- वृक्ष + छाया = वृक्षच्छाया
- लक्ष्मी + छाया = लक्ष्मीच्छाया
व्यञ्जन सन्धि नियम- 9
- यदि किसी स्वर के बाद 'स्' तथा 'थ्' वर्ण आये तो 'स्' के स्थान पर 'ष्' तथा 'थ्' के स्थान पर 'ठ्' हो जाता है।
व्यञ्जन सन्धि नियम- 9 उदाहरण
- अनु + स्थान = अनुष्ठान
- अनु + स्था = अनुष्ठा
- प्रति + स्था = प्रतिष्ठा
- नि + स्थुर = निष्ठुर
- युधि + स्थिर = युधिष्ठिर
- प्रति + स्थिर = प्रतिष्ठित
- नि + स्था = निष्ठा
व्यञ्जन सन्धि नियम- 10
- जिन शब्दों में ऋ, र्, ष् वर्ण आये तो उनमें 'न्' का 'ण्' हो जाता है।
व्यञ्जन सन्धि नियम- 10 उदाहरण
- परि + नत = परिणत
- परि + मान = परिमाण
- परि + नाम = परिणाम
- परि + नय = परिणय
- ऋ + न = ऋण
- घृ + ना = घृणा
- प्र + आन = प्राण
- राम + अयन = रामायण
- प्र + मान = प्रमाण
- कृष् + नु = कृष्ण
- विष् + नु = विष्णु
- पुरा + न = पुराण
- कार + न = कारण
- प्र + मान = प्रमाण